………. मैं चुप हूं……
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………. मैं चुप हूं……
मेरे पास शब्दों की माला है
पास मेरे संस्कारों की थाती है
जानती हूं ,अच्छाई और बुराई के भेद
मेरी कलम ने सिखाया है मुझे
न करें मुझे
बेचारी और बेबस समझने की भूल….
मैं चुप हूं ,तो महज इसलिए की
मेरे संस्कार इसकी गवाही नहीं देते…
पता है मुझे
मेरी अच्छाइयां और बुराइयां भी
तुमसे, न डरी हूं न सहमी हूं
अन्याय को बर्दास्त करने की
फितरत नहीं मेरी
अत्याचार के खिलाफ
आवाज उठाना मेरी आदत मे शामिल है
और…यही मेरी ताकत भी…
……………………
नौशाबा जिलानी सुरिया
महाराष्ट्र, सिंदी (रे)