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14 Mar 2022 · 2 min read

मेरी पंचवटी

मेरी पंचवटी

यह कैसी वासना दृगों में,लखन देख कर घबराये।
बेचारी उर्मिला भवन में,कैसी होगी कुम्हलाये।
सूर्पणखा सुंदरी अनूठी, छल से माया रच लायी।
पर्णकुटी में राम दिखे थे,सहज लालसा छलकायी।

शयन कक्ष में सियाराम थे ,तभी हुआ वह कोलाहल।
सियाराम तब बाहर आये, देखें कैसा कोलाहल।
शूर्पणखा कर रही निवेदन ,अपना लो मुझको स्वामी।
अब एकाकी जीवन तज कर, बन जाओ मेरे स्वामी।

किया व्यंग्य माता सीता ने, अपना लो तुम देवर जी।
संग मुझे भी मिल जाएगा ,जेठानी बन देवर जी।
देख राम की अनुपम छवि को, शूर्पणखा मन हरसायी।
वैवाहिक प्रस्ताव रखा तब, मायावी मन सरसायी।

तत्क्षण लखनलाल ने उससे ,अस्वीकार विवाह किया।
सियाराम की अनुमति पाकर, देवर ने प्रतिकार किया।
विस्मित होकर कहा राम ने ,आजीवन पत्नी व्रत हूँ।
संशय में मत रहना देवी, सीता का मैं ही पति हूँ।

किया राम ने तिरस्कार जब ,मूल स्वरूप में आई।
सूर्पणखा थी वन राक्षसी, रूप भयंकर धर लायी।
क्रोधित हो झपटी सीता पर, अपमानित सा घूँट पिये।
सहम गई थी सीता माता ,त्वरित राम की ओट लिये।

क्रोधित होकर लखन लाल ने ,कर्ण नासिका काट दिया।
अंग भंग हो सूर्पणखा ने, वन को सर पर उठा लिया।
क्रंदन करती बढ़ी दानवी, खर दूषण के निकट गयी।
अपमानित यों किया लखन ने ,अपना संकट विकट कही।

वनवासी यह कौन धनुर्धर, पंचवटी में कब से हैं ।
खर दूषण ने किया गर्जना, अभिमानी अब तड़पे हैं।
राम लखन को ललकारा जब ,खड़ग कृपाण कराल लिये।
खर दूषण ने हुंकारा जो, सैन्य सहित वध राम किये।

राम -लखन के आश्वासन पर ,दंडक वन अब निर्भय है ।
खर दूषण सेना के बध से, दंडक वासी निर्भय हैं।
भाग अकम्पन लंका पहुंँचा,लड़ने को तैयार किया।
अभिमानी रावण भगिनी हित,सेना को तैयार किया।

पूज्य पिता की आज्ञा पाकर,धर्मध्वजा फहराया है।
सीताजी ने उनके हित में ,पत्नी धर्म निभाया है।
पीछे पीछे चले लक्ष्मण, पाकर प्रभु से अनुशासन।
भ्रात धर्म को चले निभाने, धर्म ध्वजा लेकर वनवन।

डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
मुख्य चिकित्सा अधीक्षक
संयुक्त जिला चिकित्सालय
बलरामपुर।271201

Language: Hindi
Tag: गीत
373 Views

Books from डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम

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