मुक्तक-
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मुक्तक-
नहीं देता दिखाई है, धरा पर कर्ण- सा दानी।
नहीं गंगा सरीखा है,किसी नद में कहीं पानी।
करें तारीफ़ क्या इसकी,हमें है जान से प्यारा,
न हिंदुस्तान का कोई,कहीं जग में मिला सानी।।
डाॅ बिपिन पाण्डेय
मुक्तक-
नहीं देता दिखाई है, धरा पर कर्ण- सा दानी।
नहीं गंगा सरीखा है,किसी नद में कहीं पानी।
करें तारीफ़ क्या इसकी,हमें है जान से प्यारा,
न हिंदुस्तान का कोई,कहीं जग में मिला सानी।।
डाॅ बिपिन पाण्डेय