मंत्र :या देवी सर्वभूतेषु सृष्टि रूपेण संस्थिता।
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मंत्र :या देवी सर्वभूतेषु सृष्टि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
( अर्थात जो देवी संपूर्ण सृष्टि में विद्यमान है और रचयिता है, उनको मैं नमस्कार करता हूँ, बार-बार उनको नमन करता हूँ।)
नवरात्र के चौथे दिन दुर्गा जी ने चौथा रूप माँ कुष्मांडा का रूप धारण किया था। कुष्मांडा शब्द तीन शब्दों से मिलकर बना है- कु- जिसका अर्थ है छोटा; ऊष्मा- जिसका अर्थ है गर्मी और अंडा- जिसका अर्थ है अंडा।
यह आदि परम शक्ति ही थी जिन्होंने ब्रह्मांड में जीवन को फिर से शुरू करने के लिए माँ कुष्मांडा का रूप धारण किया था मान्यता है की देवी पार्वती ने ऊर्जा और प्रकाश को संतुलित करने के लिए सूर्य के केंद्र में निवास किया। सूर्य लोक में रहने की शक्ति क्षमता केवल इन्हीं में है इसलिए इनके शरीर की कांति और प्रभा सूर्य की ही भांति दैदीप्यमान है।माँ कुष्मांडा देवी के हाथ में जो अमृत कलश होता है उससे वह अपने भक्तों को दीर्घायु और उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करती हैं। माँ कुष्मांडा की पूजा करने से सुख, समृद्धि तथा बुद्धि का विकास होता है, साथ ही जीवन में निर्णय लेने की शक्ति बढ़ती है। माँ की अष्टभुजाएं हैं। आठवें हाथ में सभी सिद्धियौ और निधियों को देने वाली जपमाला है ,जो जीवन में कर्म करने का संदेश देती है। उनकी मुस्कान यह बताती है कि हमें हर परिस्थिति का सामना हँसकर करना चाहिए। माँ कुष्मांडा सिंह की सवारी करती हैं जो धर्म का प्रतीक है। इस दिन नारंगी रंग के वस्त्र पहनकर माता की पूजा करने से वह प्रसन्न होती है और जीवन में प्रसन्नता का आशीर्वाद देती है। माँ कुष्मांडा को भोग में मालपुए का भोग लगाया जाता है। माँ कुष्मांडा का स्मरण करके उनको धूप, अक्षत, लाल पुष्प, सफेद कुम्हड़ा, फल, सुखे मेवे और सौभाग्य का सामान अर्पित करें।
हरमिंदर कौर
अमरोहा (यू.पी.)