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18 Oct 2022 · 1 min read

बिखरे हम टूट के फिर कच्चे मकानों की तरह

जीस्त में आया कोई आँधी तूफानों की तरह
बिखरे हम टूट के फिर कच्चे मकानों की तरह

रात दिन बेबसी है एक निवाले के लिए
खुदकुशी कर न ले मजबूर किसानों की तरह

ज़िन्दगी खेल नहीं क्या क्या दिखाई मुझको
हर घड़ी लड़ता रहा मैं भी जवानों की तरह

कोशिशें लाख करो तुम भी भुलाने को मुझे
पर मिटूंगा न ज़िहन से मैं निशानों की तरह

फूल खिलते थे यहाँ रंग बिरंगे कितने
रह गया है वो चमन आज वीरानों की तरह

कितने मजबूत इरादे थे कभी मेरे भी
अब हूँ मजबूर किसी प्रेम दीवानों की तरह

नाता जन्मों का रहा है ख़ुदा मेरा जिनसे
“अश्क” अब बचके निकलते है बेगानों की तरह

– “अश्क”

Language: Hindi
98 Views
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