*प्रदूषण (हास्य-व्यंग्य)*

*प्रदूषण (हास्य-व्यंग्य)*
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पार्क में सुबह – सुबह पाँच-सात लोग गहरी – गहरी सांसे ले रहे थे । अधिकारी ने दूर से देखा और दौड़ लगाकर उन लोगों को पकड़ लिया । अधिकारी के साथ पुलिस थी । अतः यह बेचारे लोग जो गहरी सांसो का अभ्यास कर रहे थे ,कुछ नहीं कर पाए । तुरंत अधिकारी ने लेटर टाइप करवाया और अभ्यासियों को थमा दिया । अभ्यासियों ने पढ़ा तो भौंचक्के रह गए । लिखा था ” आप सुबह-सुबह गहरी सांसे छोड़कर वातावरण को प्रदूषित कर रहे हैं । अतः आपको घर में नजरबंद क्यों न कर लिया जाए ?”
अभ्यासी डर गए । कहने लगे “हम तो गहरी – गहरी सांसे ले रहे है ।”
अधिकारी ने बात काटते हुए कहा “आरोप यह है कि तुम सब लोग गहरी – गहरी सांसे छोड़ रहे हो । ”
“जब सांस लेंगे ,तो छोड़ना तो पड़ेगा ही।”- एक अभ्यासी ने डरते डरते कहा।
” लेकिन तुम गंदी सांसे छोड़ रहे हो ? बताओ क्या मैं गलत कह रहा हूं ?”
-अधिकारी ने पूरी ताकत के साथ तर्क रखा।
” जब हम पार्क में आते हैं तो अच्छी सांसे लेने के लिए आते हैं ।स्वच्छ वायु गहरी सांसो के साथ अपने भीतर लेते हैं और फिर छोड़ देते हैं।”
“बिल्कुल यही बात है । मेरी आपत्ति सांसे छोड़ने पर है ,क्योंकि वह अशुद्ध होती हैं। आप इतनी गहरी – गहरी सांसे क्यों छोड़ते हैं ? देखिए ! अगर इस तरह से सब लोग गहरी-गहरी सांसे छोड़ने लगेंगे ,तब यहां का वातावरण तो एक दिन में ही अशुद्ध हो जाएगा ।”
“मगर यह काम तो हम अनेक वर्षों से कर रहे हैं। ”
“कोई कार्य अनेक वर्ष से किया जा रहा है इससे वह सही सिद्ध नहीं हो जाता। गहरी सांस छोड़ना प्रदूषण को बढ़ाने वाला कार्य है । मैं आप पर जुर्माना भी लगाउँगा और आपको घर पर नजरबंद करके आपकी गतिविधियों पर अंकुश भी लगाना पड़ेगा।”
अभ्यासी लोग अब बिगड़ गए । बोले “संविधान में सब को जीने का अधिकार है । स्वस्थ रहने का अधिकार है। आप की कार्यवाही मनमानी है तथा आप पद का दुरुपयोग कर रहे हैं । हम आपके खिलाफ अदालत में जाएंगे और मुकदमा दर्ज कराएंगे।”
सुनकर अधिकारी हंसने लगा। यह देख कर अभ्यासीगण और भी ज्यादा चकित हो गए ।
अभ्यासियों को चकित होते देखकर अधिकारी के बाबू ने उन सबको एक तरफ कोने में ले जाकर समझाया ” क्यों बात का बतंगड़ बना रहे हो ? कोर्ट – कचहरी करोगे तो लाखों रुपए खर्च हो जाएंगे । परेशान अलग होगे। कहो तो मैं मामला निपटा दूंगा।”
अभ्यासी सोच में पड़ गए । कहने लगे “हम किस बात की रिश्वत दें, जब हम सही काम कर रहे हैं ? ”
बाबू ने समझाया “सही काम की ही तो रिश्वत ली जाती है । अगर गलत काम कर रहे होते तो अब तक जेल भिजवा दिए गए होते ।”
अभ्यासी उकता गए थे । कहने लगे “तुम्हारे अधिकारी हमें परेशान कर रहे हैं।”
बाबू ने कहा “समझदारी से काम लो और परेशानी से बच जाओ । सबको मालूम है कि सांस लेने और छोड़ने में कुछ नहीं रखा है । असली बात यह है कि हमारे साहब खुद बड़ी रिश्वत देकर इस पद पर आए हैं । अपने नुकसान का कोटा पूरा कर रहे हैं । दुनिया का सारा काम परस्पर आदान-प्रदान से ही चलता है । आप भी इस प्रक्रिया के हिस्सेदार बन जाइए और फिर चैन से सांसे लीजिए और मजे में सांसे छोड़िए । कोई कुछ नहीं कहेगा ।”
मरता क्या न करता ! अभ्यासियों ने यही उचित समझा कि ले – देकर मसला निपटा लिया जाए ,इसी में भलाई है । एक कोने में ले जाकर सबने अपनी – अपनी जेब से कुछ – कुछ रुपए निकालकर अधिकारी को दिए । अधिकारी ने नोटिस फाड़ा और चला गया । उसे न सांस लेने से मतलब था ,न छोड़ने से ।
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*लेखक : रवि प्रकाश ,,बाजार सर्राफा*
*रामपुर (उत्तर प्रदेश)*
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