प्रदर्शन
![](https://cdn.sahityapedia.com/images/post/c964d1d49c3ffe293505f6bd1e1b1675_c6d40b5ccde5433cdf941a0239bc079f_600.jpg)
“प्रदर्शन”
चकाचौंध जो देख रहे हो, वो सब केवल हौआ है।
धवल हंस है घूम रहा, अंदर से काला कौआ है।।
कपड़ों से कैसे पहचाने, पढ़ा लिखा या बउआ है।
कथा पढ़े,तब पता चलेगा, पंडित है की नौआ है।।
जमींदार खेतों से जो थे, शहर अब उनका ठौआ है।
जिनकी ताकत गांव था सारा, ताकत उनका पौआ है।।
दूध दही सब शहर भेजता, न दरवाजे पर गौआ है।
न रस गुदुरी भूजा ही है, अब कहां चना कहां जौवा है।।
चमचे दलाल और भांडो का, अब होता खूब बोलौवा है।
शहरों को अब मात दे रहा, “संजय” अपना तो गौवां है।।
जमीं से जमींदार है, जमीर से ताकतवर
जै हिंद