नये अमीर हो तुम
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दुआ लबों पे तो आंखों में बन्दगी रखना
नये अमीर हो तुम ख़ुद को आदमी रखना
बुलन्दियों पे पहुंचकर बदल न जाना तुम
बुलन्दियों पे पहुंचना तो सादगी रखना
उतर न जाए कोई रंज दिल में गहरे तक
हरेक रंज का अहसास काग़ज़ी रखना
कभी-कभी तेरे अपने भी रंग बदलेंगे
ज़रा सी बात पे सबसे न दुश्मनी रखना
हवा बुझाएगी जलते हुए चराग़ों को
तेरा है काम अंधेरों में रोशनी रखना
— शिवकुमार बिलगरामी