Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
30 Dec 2022 · 2 min read

*नया साल आ गया (हास्य व्यंग्य)*

नया साल आ गया (हास्य व्यंग्य)
■■■■■■■■■■■■■■■■■
आदमी अच्छा-भला बिस्तर पर रजाई में दुबका पड़ा था । लेकिन नए साल को किसी की खुशियाँ कहाँ अच्छी लगती हैं ! सुबह हुई, यद्यपि सूरज नहीं निकला था तथापि, नया साल दौड़ता हुआ घर के दरवाजे पर आया और उसने दस्तक दी। यहाँ आकर आदमी मजबूर हो जाता है । जब दरवाजे पर घंटी बजेगी तो रजाई हटाकर बिस्तर छोड़कर दरवाजे तक जाना ही पड़ेगा। सारा मूड खराब हो गया । दरवाजा खुला तो देखा कि नया साल खड़ा है ।
हमने पूछा “क्यों भाई साहब ! क्या काम है ? किस लिए आए हैं ?”
नया साल मुस्कुराया । कहने लगा “आपको नहीं पता ,मैं नया साल हूँ।”
हमने कहा “जो भी हो ,लेकिन इतनी सुबह-सुबह क्यों आए हो ?”
वह तनिक नाराज हुआ । बोला “आपके घर पर तो मैं बहुत देर में आया हूं। वास्तव में तो रात के बारह बजे से मैं घूम रहा हूँ। सब लोग मेरे साथ घूम रहे हैं ।”
हमने आश्चर्य से पूछा “रात के बारह बजे इतनी ठंड में भला तुम्हारे साथ कौन घूमेगा ? सुबह को भी आजकल सुबह कौन कहता है ? जब सूरज निकले तभी गुड मॉर्निंग !”
नए साल ने जम्हाई ली और कहने लगा “परेशान तो मैं भी हो गया हूं । चलो, बैठते हैं। एक कप चाय पिलाओ ,नया साल मनाओ ।”
हमने कहा “चलो ठीक है !तुम भी चाय पियो, हम भी चाय पीते हैं ”
चाय आई । नए साल ने फटाफट एक कप चाय एक ही सॉंस में पी डाली । कहने लगा “ठंड बहुत लग रही है।”
हम ने जवाब दिया “जब तुमको ही ठंड लग रही है ,तो बाकी लोगों की तो केवल कल्पना ही की जा सकती है कि उन्हें कितनी ठंड लग रही होगी ! अब तुम्हारे साथ नया साल कौन मनाएगा ।”
वह बोला “जाड़ा ,गर्मी और बरसात यह तो सब भगवान की बनाई हुई ऋतुएँ हैं । मुझे तुम किसी भी मौसम से शुरू हुआ मान लो। वास्तव में तो मैं हर ऋतु से शुरू होता हूँ और हर ऋतु पर समाप्त भी हो जाता हूँ । ”
हमने कहा “तुम्हारी यह बात हमें पसंद आई । दो-तीन महीने बाद आना । तब फुर्सत से तुम्हारे साथ नया साल मनाऍंगे। तब कोहरा भी नहीं होगा । पेड़ पत्ती फूल पौधे मुस्कुराने लगेंगे । ठिठुरन भी नहीं रहेगी।”
नया साल वायदा करके चला गया कि मैं कुछ महीने बाद फिर आऊंगा । चलते-चलते बोला “इतनी ठंड में एक कप चाय पिलाने के लिए आपका धन्यवाद”
■■■■■■■■■■■■■■■■■■
लेखक: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

528 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Ravi Prakash
View all
You may also like:
दफन करके दर्द अपना,
दफन करके दर्द अपना,
Mamta Rani
ग़ज़ल
ग़ज़ल
ईश्वर दयाल गोस्वामी
விடிந்தும்
விடிந்தும்
Otteri Selvakumar
बहुत तरासती है यह दुनिया जौहरी की तरह
बहुत तरासती है यह दुनिया जौहरी की तरह
VINOD CHAUHAN
तुमने कितनो के दिल को तोड़ा है
तुमने कितनो के दिल को तोड़ा है
Madhuyanka Raj
कृष्ण भक्ति में मैं तो हो गई लीन...
कृष्ण भक्ति में मैं तो हो गई लीन...
Jyoti Khari
किस कदर
किस कदर
हिमांशु Kulshrestha
रमेशराज की 11 तेवरियाँ
रमेशराज की 11 तेवरियाँ
कवि रमेशराज
हाइकु haiku
हाइकु haiku
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
आज   भी   इंतज़ार   है  उसका,
आज भी इंतज़ार है उसका,
Dr fauzia Naseem shad
" प्रेम का अर्थ "
Dr. Kishan tandon kranti
आज यादों की अलमारी खोली
आज यादों की अलमारी खोली
Rituraj shivem verma
3097.*पूर्णिका*
3097.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
यादों के अथाह में विष है , तो अमृत भी है छुपी हुई
यादों के अथाह में विष है , तो अमृत भी है छुपी हुई
Atul "Krishn"
पूरी ज़वानी संघर्षों में ही गुजार दी मैंने,
पूरी ज़वानी संघर्षों में ही गुजार दी मैंने,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
"शुभकामना और बधाई"
DrLakshman Jha Parimal
शहनाई की सिसकियां
शहनाई की सिसकियां
Shekhar Chandra Mitra
डॉक्टर
डॉक्टर
Dr. Pradeep Kumar Sharma
हाय रे गर्मी
हाय रे गर्मी
अनिल "आदर्श"
चांदनी रात में बरसाने का नजारा हो,
चांदनी रात में बरसाने का नजारा हो,
Anamika Tiwari 'annpurna '
भगवद्गीता ने बदल दी ज़िंदगी.
भगवद्गीता ने बदल दी ज़िंदगी.
Piyush Goel
🙅ख़ुद सोचो🙅
🙅ख़ुद सोचो🙅
*प्रणय प्रभात*
‘प्रकृति से सीख’
‘प्रकृति से सीख’
Vivek Mishra
तुम ऐसे उम्मीद किसी से, कभी नहीं किया करो
तुम ऐसे उम्मीद किसी से, कभी नहीं किया करो
gurudeenverma198
लागेला धान आई ना घरे
लागेला धान आई ना घरे
आकाश महेशपुरी
1)“काग़ज़ के कोरे पन्ने चूमती कलम”
1)“काग़ज़ के कोरे पन्ने चूमती कलम”
Sapna Arora
जो कभी थी नहीं वो शान लिए बैठे हैं।
जो कभी थी नहीं वो शान लिए बैठे हैं।
सत्य कुमार प्रेमी
ग़ज़ल _ टूटा है चांद वही , फिर तन्हा - तन्हा !
ग़ज़ल _ टूटा है चांद वही , फिर तन्हा - तन्हा !
Neelofar Khan
अश्रु की भाषा
अश्रु की भाषा
Shyam Sundar Subramanian
**प्यार भरा पैगाम लिखूँ मैं **
**प्यार भरा पैगाम लिखूँ मैं **
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
Loading...