*नया साल आ गया (हास्य व्यंग्य)*
नया साल आ गया (हास्य व्यंग्य)
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आदमी अच्छा-भला बिस्तर पर रजाई में दुबका पड़ा था । लेकिन नए साल को किसी की खुशियाँ कहाँ अच्छी लगती हैं ! सुबह हुई, यद्यपि सूरज नहीं निकला था तथापि, नया साल दौड़ता हुआ घर के दरवाजे पर आया और उसने दस्तक दी। यहाँ आकर आदमी मजबूर हो जाता है । जब दरवाजे पर घंटी बजेगी तो रजाई हटाकर बिस्तर छोड़कर दरवाजे तक जाना ही पड़ेगा। सारा मूड खराब हो गया । दरवाजा खुला तो देखा कि नया साल खड़ा है ।
हमने पूछा “क्यों भाई साहब ! क्या काम है ? किस लिए आए हैं ?”
नया साल मुस्कुराया । कहने लगा “आपको नहीं पता ,मैं नया साल हूँ।”
हमने कहा “जो भी हो ,लेकिन इतनी सुबह-सुबह क्यों आए हो ?”
वह तनिक नाराज हुआ । बोला “आपके घर पर तो मैं बहुत देर में आया हूं। वास्तव में तो रात के बारह बजे से मैं घूम रहा हूँ। सब लोग मेरे साथ घूम रहे हैं ।”
हमने आश्चर्य से पूछा “रात के बारह बजे इतनी ठंड में भला तुम्हारे साथ कौन घूमेगा ? सुबह को भी आजकल सुबह कौन कहता है ? जब सूरज निकले तभी गुड मॉर्निंग !”
नए साल ने जम्हाई ली और कहने लगा “परेशान तो मैं भी हो गया हूं । चलो, बैठते हैं। एक कप चाय पिलाओ ,नया साल मनाओ ।”
हमने कहा “चलो ठीक है !तुम भी चाय पियो, हम भी चाय पीते हैं ”
चाय आई । नए साल ने फटाफट एक कप चाय एक ही सॉंस में पी डाली । कहने लगा “ठंड बहुत लग रही है।”
हम ने जवाब दिया “जब तुमको ही ठंड लग रही है ,तो बाकी लोगों की तो केवल कल्पना ही की जा सकती है कि उन्हें कितनी ठंड लग रही होगी ! अब तुम्हारे साथ नया साल कौन मनाएगा ।”
वह बोला “जाड़ा ,गर्मी और बरसात यह तो सब भगवान की बनाई हुई ऋतुएँ हैं । मुझे तुम किसी भी मौसम से शुरू हुआ मान लो। वास्तव में तो मैं हर ऋतु से शुरू होता हूँ और हर ऋतु पर समाप्त भी हो जाता हूँ । ”
हमने कहा “तुम्हारी यह बात हमें पसंद आई । दो-तीन महीने बाद आना । तब फुर्सत से तुम्हारे साथ नया साल मनाऍंगे। तब कोहरा भी नहीं होगा । पेड़ पत्ती फूल पौधे मुस्कुराने लगेंगे । ठिठुरन भी नहीं रहेगी।”
नया साल वायदा करके चला गया कि मैं कुछ महीने बाद फिर आऊंगा । चलते-चलते बोला “इतनी ठंड में एक कप चाय पिलाने के लिए आपका धन्यवाद”
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लेखक: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451