*धीर (कुंडलिया)*
धीर (कुंडलिया)
________________________________
पाते मंजिल हैं वही , होते हैं जो धीर
संयम – गुण जिनमें बसा ,भीतर से जो वीर
भीतर से जो वीर , पराजय से कब डरते
लेकर नव – उत्साह , युद्ध में पुनः उतरते
कहते रवि कविराय ,कठिन क्षण सबके आते
जो स्वभाव के धीर ,सफलता वह ही पाते
_________________________
धीर = जो जल्दी विचलित न हो
_________________________
रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451