दिली नज़्म कि कभी ताकत थी बहारें,
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दिली नज़्म कि कभी ताकत थी बहारें,
झड़ गए फूल पत्ते भी अब तो साख से।
यादों के गलियारों में सन्नाटे कि आजमाइश है,
प्यार भरे गीत अब हम लिखें भी तो कैसे?
दिली नज़्म कि कभी ताकत थी बहारें,
झड़ गए फूल पत्ते भी अब तो साख से।
यादों के गलियारों में सन्नाटे कि आजमाइश है,
प्यार भरे गीत अब हम लिखें भी तो कैसे?