दवा के ठाँव में
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ग़ज़ल
2122-2122-212
जिस्म घायल और छाले पाँव में
लग गयी है जिंदगी भी दाँव में
खाक बाहर हर नगर की छान ली
लौटकर फिर आ गया हूँ गाँव में
हो गई बस्ती घनी कौवों की अब
कान ये पकने लगे हैं काँव में
दर्द-ए-दिल की इस जुदाई में सदा
तप रही है देह ठंडी छाँव में
जिंदगी के दर्द को राहत मिले
किस दुआ के किस दवा के ठाँव में
डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’
26/2/2023