“तू मिल जाए तो”
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पाने को फिर क्या रहा, तू मिल जाए तो
यही तो एक सपना है, तू मिल जाए तो
रहेगा ना शिकवा, फिर जिंदगी से कोई
ग़र किसी मोड़ पर , तू मिल जाए तो
खुदा भी ग़र हो नाराज, हो जाए मुझसे
इबादत करूँगा तेरी, तू मिल जाए तो
ढलने को आ गयी है,शामे जिंदगी भी
फिर भी है इन्तजार, तू मिल जाए तो
गुजरे कई मौसम और कई बरस भी
तरस गए” राणाजी “तू मिल जाए तो
_©ठाकुर प्रतापसिंह “राणाजी”
सनावद (मध्यप्रदेश)