जो तुम समझे ❤️
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मैं उदासीन ! शुष्क ! अकेला ,
पर ऐसा नही जो तुम समझे ,
अन्तर्मन करता मेरा रंगारंग कार्यक्रम ।
मैं अलबेला शौकीन हूँ ,
ऐसा तुमको क्यो नही लगता ,
स्वयं मुझे विश्वास है ,
गीत- गान नाटक सा करता मेरा मन ।।
मैं उदासीन-शुष्क-अकेला
उष्ण पर्णपाती आर्द्र मेरा मन ,
सदाबहार कटीला सवाना तुम्हारा तन ,
पर ऐसा नही जो तुम समझे ,
अंतर्मन करता मेरा रंगारंग कार्यक्रम ।।।
तुम्हे लगता मैं मनहूस ,
स्वयं मुझे विश्वास है ,
गुस्सा ,क्रोध, अहंकार न मेरा ,
मौन मेरी अभिव्यंजना,
पर ऐसा नही,
अंतर्मन करता मेरा रंगारंग कार्यक्रम ।।।।
स्वयं लगता मैं तानाशाह ,
ऐसा मेरा भ्रम समझे ,
राजा- बादशाह मुझे ऐसा मेरा मन कहे ,
पर ऐसा नही जो तुम समझे
अंतर्मन करता मेरा रंगारंग कार्यक्रम ।।