गुरु
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सीख भले ही इक छोटी सी
भरती जीवन मे उजियारा
प्रज्वलित हो लौ जगमग सी
बना देती व्यक्तित्व न्यारा
अज्ञान तमस को दूर भगाता
राह उज्ज्वल नई दिखलाता
नही मिलता ज्ञान गुरु बिना
होता संसार सूना गुरु बिना
इक कुम्हार सी चोट करता
भीतर वो ही सहारा बनता
बाह्य जगत से ठोस बनाता
स्वरूप फिर नया सजा देता
है जीवन में तैयार सभी
होता शिक्षा का सार यही
शिष्य का वो है भाग्य विधाता
तभी कहलाये राष्ट्र निर्माता
ऋण कोई न चुका सकता
महत्ता न कभी न भूला सकता
गुरु का अतुलनीय योगदान है
चरणों में वंदन प्रणाम है
गुरु-शिष्य परंपरा पुरानी
भारतवर्ष की यही कहानी
ज्ञानदीप जला उद्धार करें
गुरु का आज सत्कार करें।।
✍🏾”कविता चौहान”
स्वरचित एवं मौलिक