ग़ज़ल
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नही होता है गुनाहों से वफा का रिश्ता ।
दर्द देता ही है जो रखता सजा का रिश्ता ।
ख़ूबसूरत वो वफाई में उतना लगता है ।
जितना रखता है जो उल्फ़त से अदा का रिश्ता ।
मिलके धरती से आसमां भी बिखर जाता है।
जब बनाता है बादलों से घटा का रिश्ता ।
भूख इंसान की औकात बता देती है ।
तब पता चलता है रोटी से कज़ा का रिश्ता ।
मेरी उम्मीदों के जुगनू हैं तेरी आँखों में
महज़ तुम्ही से मैं रखता हूँ ख़ुदा का रिश्ता ।