कतरनों सा बिखरा हुआ, तन यहां
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कतरनों सा बिखरा हुआ, तन यहां
दर्ज़ी भी कर दे मना,जिसे सीलने से।
फकत अपने वंश की खातिर सह रहा है,
वर्ना फ़र्क नहीं पड़ता लड़कियों के जीने से।
रख कर उपवास दिखावे का फिर वह
खींच लेता है आंचल,मां के सीने से।
सिसकियों की आवाजें फज़ा में घुली है,
मिटतीं नहीं है,जो कभी मिटाने से ।
आधुनिकता ने नई ऊंचाईयां दि है हमें,
गर्त में धंसने को नहीं कहा है किसी ने।