इतना ना हमे सोचिए
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इतना ना हमे सोचिए
इतना ना ख़ुद को कोसिए
और श्रृंगार – व्यंगार इतना क्यूँ करते हों, जाना
हम तो आपकी “सादगी” पे मोहित हों लिए
The_dk_poetry
इतना ना हमे सोचिए
इतना ना ख़ुद को कोसिए
और श्रृंगार – व्यंगार इतना क्यूँ करते हों, जाना
हम तो आपकी “सादगी” पे मोहित हों लिए
The_dk_poetry