आत्मसम्मान
![](https://cdn.sahityapedia.com/images/post/f46dd6213e874ac46680b193e600600a_bb7bc9263eed0d42936d0b0ee7a5be20_600.jpg)
कितने ज्यादा सभ्य हैं हम कि अपनी बात को स्पष्ट रूप से कहने की बजाय दूसरों के डर से मक्ख़न मिश्री लगाकर अपनी बात कहते हैं ,लेकिन क्या कभी सोचा है कि जिन लोगों से हम डरते हैं उनका खुद का कोई वजूद नहीं होता । सच बात को कहने में इतना डर क्यों और किसलिए ? क्या खुद को छलकर हम अपनी आत्मा को खुश रख सकते हैं ?हम क्या हैं ,कौन हैं ,हमारा लक्ष्य क्या है ,इस धरती पर क्यों आये हैं : गहराई से सोचने की जरूरत है ।दूसरों की उँगलियों की कठपुतली बनने की बजाय अपना छोटा सा अस्तित्व बनाने में जो खुशी प्राप्त होती है उसी को आत्मसम्मान और स्वाभिमान का नाम दिया गया है ।आदर्शवादी और बनावटीपन इन दोनों में जमीन आसमान का अंतर है ।दूसरों की झूठी गुलामी करने से अच्छा स्वयं का एकल अस्तित्व बनाना कहीं ज्यादा मायने रखता है ।
#खुदाई न मिली गर तो कोई गम नहीं
किश्तों में जीना बखूबी सीखा है हमने
इंसानों की बस्ती में इबादत गर जुर्म है ,
यादों के साथ जीना मुश्किल तो नहीं ।#
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़