आज भी औरत जलती है
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यहां कल भी औरत
जलती थी
यहां आज भी औरत
जलती है
यह आदमखोर
तहज़ीब है जो
मासूमों के ख़ून पर
पलती है…
(१)
उस शातिर क़ौम के
ज़ुल्मों का
कभी न कभी तो
हिसाब होगा
जो शास्त्रों की
दुहाई देकर
सदियों से अवाम को
छलती है…
(२)
मालूम नहीं
इतनी-सी बात
कब समझेंगे
पागल हुक़्मरान
चाहे जितनी
संगीन हो रात
वह आख़िर सुबह में
ढ़लती है…
(३)
इस दुनिया की
तारीख़ से तो
यही सबक हमें
मिला हर बार
ज़हालत का
मौसम आते ही
देशों में गुलामी
फलती है…
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