आखिर कुछ तो सबूत दो क्यों तुम जिंदा हो..
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आखिर कुछ तो सबूत दो क्यों तुम जिंदा हो..
क्यों फिर छोटी-छोटी बातों पर तुम शर्मिंदा हो
खुला आसमान खुली हवाएं अंतर्मन में ज्वाला..
फिर भी पर नहीं फेहराये ऐसा कौन परिंदा हो |
कवि दीपक सरल
आखिर कुछ तो सबूत दो क्यों तुम जिंदा हो..
क्यों फिर छोटी-छोटी बातों पर तुम शर्मिंदा हो
खुला आसमान खुली हवाएं अंतर्मन में ज्वाला..
फिर भी पर नहीं फेहराये ऐसा कौन परिंदा हो |
कवि दीपक सरल