*अभी भी याद आते हैं, बरातों वाले दिन साहिब(मुक्तक)*
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अभी भी याद आते हैं, बरातों वाले दिन साहिब(मुक्तक)
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अभी भी याद आते हैं, बरातों वाले दिन साहिब
ठहरने वाले जनवासों में, रातों वाले दिन साहिब
वह नखरे-गुस्सा-फरमाइश, अहा ! क्या दौर चलता था
कहॉं वह खो गए खट्मीठी, बातों वाले दिन साहिब
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा ,रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451