Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
5 May 2024 · 3 min read

*अंतःकरण- ईश्वर की वाणी : एक चिंतन*

लेख / गद्य
#अंतःकरण- ईश्वर की वाणी : एक चिंतन

आज रविवार है- कार्यालयीय लोगों के लिए अवकाश का दिन। व्यवसाय, आवश्यक सेवाओं व गृह-संचालन से संबद्ध लोगों का अवकाश तो कभी होता नहीं है, तथापि सप्ताह के अन्य दिनों की अपेक्षा किंचित शैथिल्यता रहती है, ऐसा स्वयंसिद्ध प्रमेय की भाँति मानकर आगे बढ़ता हूँ। मेरे कहने का तात्पर्य केवल यह कि रविवार है कार्य के प्रभार में शिथिलता है। मानस भी मुक्तावस्था में है तो क्यों न एक सार्थक चिंतन कर लिया जाए।

अंतःकरण अर्थात अंतर्चेतना, चित्त या अंग्रेजी में कहें तो Inner- Consciousness। इसे इस प्रकार भी कह सकते हैं कि यह मानव शरीर की वह आंतरिक अमूर्त सत्ता है जिसमें भले-बुरे का ठीक और स्पष्ट ज्ञान होता है। अंतःकरण दो शब्दों के मेल से बना है। अंतः और करण। अंतः अर्थात अंदर और करण से अभिप्राय साधन से है। उदाहरण के लिए कलम से हम लिखते हैं। तो यहाँ लिखना एक क्रिया है और इस क्रिया को संपादित करने लिए कर्ता को जिस साधन की आवश्यकता पड़ती है वह कलम है। अर्थात कलम साधन है। इसी प्रकार से मनुष्य विविध कर्मों को संपादित करता है यानी मनुष्य एक कर्ता है। और विविध कार्यों (कर्मों ) को करने के लिए उसे अनेक साधनों की आवश्यकता पड़ती है। यह साधन दो प्रकार के होते हैं – 1. अंतःकरण 2. बाह्यकरण। इसमें अंतःकरण को केवल अनुभूत किया जा सकता है। जबकि बाह्यकरण के अंतर्गत पाँच कर्मेन्द्रियाँ (हाथ, पैर, मुँह गुदा और लिंग) एवं पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ (आँख, कान, नाक, जीभ और त्वचा) आती हैं।

हमारे सनातन ग्रंथों में अंतः करण चतुष्टय का विशद व सुस्पष्ट वर्णन है। अंतः करण चतुष्टय अर्थात, मन, बुद्धि, चित्त व अहंकार। मन- जिसमें संकल्प विकल्प करने की क्षमता होती है। बुद्धि – जिसका कार्य है विवेक या निश्चय करना। बुद्धि कम्प्यूटर के प्रोसेसर की तरह माना जा सकता है, जिसका कंट्रोल यूनिट आत्मा है। चित्त – मन का आंतरिक आयाम है जिसका संबंध चेतना से है और चतुर्थ है अहंकार, जिससे सृष्टि के पदार्थों से एक विशिष्ट संबंध दीखता है। अहंकार एक पहनावे के समान है जिसे मनुष्य धारण किए रहता है। मन और चित्त को प्रायः समानार्थी मान लिया जाता है किंतु इनमें सूक्ष्म अंतर है। मन वह है जहाँ इच्छाएँ पनपती है अर्थात् मन धारणा, भावना, कल्पना आदि करता है। चित्त मन की आंतरिक वृति है। मन चित्त का अनुसरण करता है और इन्द्रियाँ मन के अनुसार कार्य करती है।

कई मनोवैज्ञानिकों ने भी हमारे ग्रंथों में वर्णित मतों को ही प्रतिस्थापित किया है। उन सबमें उल्लेखनीय फ्रायड है, जिसने इदं (id), अहम् (ego), पराहम् (super-ego) के सिद्धांत को वर्णित किया है।

अस्तु, हम अंतःकरण ईश्वर की वाणी की ओर रुख करते हैं। इस संदर्भ में महाकवि कालिदास रचित अभिज्ञानशाकुन्तलम् से एक श्लोक उद्घृत करना चाहूँगा-

सतां हि सन्देहपदेषु वस्तुषु प्रमाणमन्तःकरणप्रवृत्तयः ॥
-अभिज्ञानशाकुन्तलम् (महाकवि कालिदास)

अर्थात
जिस आचरण में संदेह हो उसमें सज्जन व्यक्ति को अपने अन्तःकरण की प्रवृत्ति को ही प्रमाण मानना चाहिए।

रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद समेत लगभग सभी सनातनी मनीषियों के साथ-साथ पाश्चात्य चिंतकों यथा जॉन हेनरी न्यूमन, लार्ड बायरन आदि ने भी Inner- Consciousness is the voice of God अर्थात व्यक्ति का अंत:करण ईश्वर की वाणी है- के सिद्धांत को प्रतिपादित किया है।

दैनिक जीवन में भी हम देखते हैं कि जब प्रबंधित साक्ष्यों के आधार पर किसी सत्य को मिथ्या प्रमाणित करने का प्रयास किया जाता है, तब अवश व्यक्ति अंतिम अस्त्र के रूप में इसी वाक्य का प्रयोग करता है- तुम अंतरात्मा (अंतःकरण) से पूछ कर कहो…। यहाँ तक कि संसद में सरकारों को बचाने/ गिराने हेतु होने वाले मतदान के अनुरोध में भी राजनेताओं द्वारा अंतःकरण का प्रयोग देखा गया है। राजनेता और अंतःकरण- परस्पर विरोधाभासी होते हुए भी दृष्टांत में सत्यता है। वस्तुतः अंतःकरण मनुष्य की वह मानसिक शक्ति है जिससे वह उचित और अनुचित या किसी कार्य के औचित्य और अनौचित्य का निर्णय कर पाता है। कदाचित इसीलिए अंतःकरण को ईश्वर की वाणी कहा जाता है।

तो क्या अंतःकरण से निःसृत शब्द-समुच्चय सच में ईश्वर की वाणी है? क्या अंतःकरण किंकर्तव्यविमूढ़ की स्थिति में पथ-प्रदर्शक है? क्या अंतःकरण विवश प्राण की अंतिम याचना/ निवेदन है? इन प्रश्नों का उत्तर आपका अंतःकरण ही दे सकता है।

-नवल किशोर सिंह
29/08/2021

1 Like · 1 Comment · 57 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
मुझको अपनी शरण में ले लो हे मनमोहन हे गिरधारी
मुझको अपनी शरण में ले लो हे मनमोहन हे गिरधारी
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
याद रक्खा नहीं भुलाया है
याद रक्खा नहीं भुलाया है
Dr fauzia Naseem shad
मौन सभी
मौन सभी
sushil sarna
मोहब्बत तो अब भी
मोहब्बत तो अब भी
Surinder blackpen
Khata kar tu laakh magar.......
Khata kar tu laakh magar.......
HEBA
बहुत याद आता है
बहुत याद आता है
हिमांशु बडोनी (दयानिधि)
शेखर सिंह ✍️
शेखर सिंह ✍️
शेखर सिंह
*फितरत*
*फितरत*
Dushyant Kumar
ख़ुद की हस्ती मिटा कर ,
ख़ुद की हस्ती मिटा कर ,
ओसमणी साहू 'ओश'
मेरी रातों की नींद क्यों चुराते हो
मेरी रातों की नींद क्यों चुराते हो
Ram Krishan Rastogi
माँ दुर्गा की नारी शक्ति
माँ दुर्गा की नारी शक्ति
कवि रमेशराज
*रात से दोस्ती* ( 9 of 25)
*रात से दोस्ती* ( 9 of 25)
Kshma Urmila
मूर्ती माँ तू ममता की
मूर्ती माँ तू ममता की
Basant Bhagawan Roy
"मित्रों से जुड़ना "
DrLakshman Jha Parimal
"रिश्ते की बुनियाद"
Dr. Kishan tandon kranti
तेरी कमी......
तेरी कमी......
Abhinay Krishna Prajapati-.-(kavyash)
मुद्दतों से तेरी आदत नहीं रही मुझको
मुद्दतों से तेरी आदत नहीं रही मुझको
Shweta Soni
सुबह की चाय मिलाती हैं
सुबह की चाय मिलाती हैं
Neeraj Agarwal
दिल खोल कर रखो
दिल खोल कर रखो
Dr. Rajeev Jain
मुस्की दे प्रेमानुकरण कर लेता हूॅं।
मुस्की दे प्रेमानुकरण कर लेता हूॅं।
Pt. Brajesh Kumar Nayak
हम सा भी कोई मिल जाए सरेराह चलते,
हम सा भी कोई मिल जाए सरेराह चलते,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
मैं गुजर जाऊँगा हवा के झोंके की तरह
मैं गुजर जाऊँगा हवा के झोंके की तरह
VINOD CHAUHAN
*परिस्थिति चाहे जैसी हो, उन्हें स्वीकार होती है (मुक्तक)*
*परिस्थिति चाहे जैसी हो, उन्हें स्वीकार होती है (मुक्तक)*
Ravi Prakash
*समझौता*
*समझौता*
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
Bad in good
Bad in good
Bidyadhar Mantry
सब चाहतें हैं तुम्हे...
सब चाहतें हैं तुम्हे...
सिद्धार्थ गोरखपुरी
किसान और जवान
किसान और जवान
Sandeep Kumar
.
.
*प्रणय प्रभात*
कौआ और बन्दर
कौआ और बन्दर
SHAMA PARVEEN
*याद  तेरी  यार  आती है*
*याद तेरी यार आती है*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
Loading...