Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
13 Feb 2017 · 2 min read

उचकन ।

क्या ? हुआ रघु ! हॅसते हुए उसके मित्र श्यामू ने पूॅछा ही था कि रघु भी खिल-खिलाकर हॅसते हुए बोला ; भाई बस जरा सा ! साहेब को आज चिढ़ा दिया है तो वह थोड़ा उचक गये हैं । श्यामू बोला चिंता न करो मित्र तुम्हारा सवासेर मैं हूॅ न सॅभालने के लिए । दोनों ही साथ ही भर्ती हो विभाग के मुख्य मिस्त्री जो बन बैठे थे और भर्ती स्थान से ही रिटायर भी होना था , सारे नियम दीमकों के हवाले जो कर दिए थे इनलोगों ने ।
तभी उचके हुए और अपने ही आदेशों की धज्जियाॅ उड़ाने वाले रघु को बुलाया तो वह ; गिरगिट से भी जल्दी रंग बदलते हुए अपने मातहतों पर सारी गल्ती झोंकता चला गया था , साथ ही खुद के लिए लाचारी दिखा ! बस , अंग्रेज़ी में “साॅरी” बोलता चला गया । साहेब की उचकन कुछ कम हो गयी थी उसकी रंग बदलती शैली देख कि वरिष्ठ होकर कैसी सफाई से मातहतों पर उसकी झोंकाई देख ।
उसने विषैली मुस्कान फेरते हुए कहा साहेब जाऊँ अब ! सारा काम मैंने खत्म करवा दिया है । और मूक सहमति मिलते ही जाते-2 पुनः बोला कि साहेब ! सामान की आलमारी की चाबी जो कि उसी के जिम्मे थी एक नशेड़ी मातहत पर खोने का आरोप लगा !फुर्र हो गया । साहेब की अगली उचकन देखने के पहले ।
तभी उसका मित्र श्यामू आया बोला , साहेब आजकल थाने को बीस हजार रूपया दे किसी का भी मर्डर करा ! साफ बचा जा सकता है ।
यह सुन उचकन में बेइंतहा बढ़ोतरी देख वह भी चुपचाप निकल गया।और श्यामू भी जाकर रघु के साथ अगले चौराहे पर मजे से चाय की चुस्कियाॅ ले रहे थे ; इन्हीं उचकनों पर ! नियम जो विलुप्त प्रायः जो हो गये थे ।

Language: Hindi
613 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
पैसा ना जाए साथ तेरे
पैसा ना जाए साथ तेरे
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
मौन हूँ, अनभिज्ञ नही
मौन हूँ, अनभिज्ञ नही
संजय कुमार संजू
ऐ,चाँद चमकना छोड़ भी,तेरी चाँदनी मुझे बहुत सताती है,
ऐ,चाँद चमकना छोड़ भी,तेरी चाँदनी मुझे बहुत सताती है,
Vishal babu (vishu)
मेरी गुड़िया
मेरी गुड़िया
Kanchan Khanna
मैं तो महज क़ायनात हूँ
मैं तो महज क़ायनात हूँ
VINOD CHAUHAN
फितरत
फितरत
Sukoon
विचार
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
ये आंखों से बहती अश्रुधरा ,
ये आंखों से बहती अश्रुधरा ,
ज्योति
प्यार के
प्यार के
हिमांशु Kulshrestha
करते बर्बादी दिखे , भोजन की हर रोज (कुंडलिया)
करते बर्बादी दिखे , भोजन की हर रोज (कुंडलिया)
Ravi Prakash
💐प्रेम कौतुक-338💐
💐प्रेम कौतुक-338💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
मौन तपधारी तपाधिन सा लगता है।
मौन तपधारी तपाधिन सा लगता है।
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
"ग से गमला"
Dr. Kishan tandon kranti
मौके पर धोखे मिल जाते ।
मौके पर धोखे मिल जाते ।
Rajesh vyas
सृजन पथ पर
सृजन पथ पर
Dr. Meenakshi Sharma
शिव स्वर्ग, शिव मोक्ष,
शिव स्वर्ग, शिव मोक्ष,
Atul "Krishn"
नारी
नारी
Prakash Chandra
कुछ सपने आंखों से समय के साथ छूट जाते हैं,
कुछ सपने आंखों से समय के साथ छूट जाते हैं,
manjula chauhan
संघर्ष
संघर्ष
विजय कुमार अग्रवाल
छोड दो उनको उन के हाल पे.......अब
छोड दो उनको उन के हाल पे.......अब
shabina. Naaz
शादी की उम्र नहीं यह इनकी
शादी की उम्र नहीं यह इनकी
gurudeenverma198
अच्छे दिन
अच्छे दिन
Shekhar Chandra Mitra
ज़रा सी बात पे तू भी अकड़ के बैठ गया।
ज़रा सी बात पे तू भी अकड़ के बैठ गया।
सत्य कुमार प्रेमी
ग़ज़ल/नज़्म - मुझे दुश्मनों की गलियों में रहना पसन्द आता है
ग़ज़ल/नज़्म - मुझे दुश्मनों की गलियों में रहना पसन्द आता है
अनिल कुमार
2464.पूर्णिका
2464.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
बंद करो अब दिवसीय काम।
बंद करो अब दिवसीय काम।
ओम प्रकाश श्रीवास्तव
हर प्रेम कहानी का यही अंत होता है,
हर प्रेम कहानी का यही अंत होता है,
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
महिलाएं अक्सर हर पल अपने सौंदर्यता ,कपड़े एवम् अपने द्वारा क
महिलाएं अक्सर हर पल अपने सौंदर्यता ,कपड़े एवम् अपने द्वारा क
Rj Anand Prajapati
#महाभारत
#महाभारत
*Author प्रणय प्रभात*
हम और तुम जीवन के साथ
हम और तुम जीवन के साथ
Neeraj Agarwal
Loading...