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5 Feb 2017 · 1 min read

खतरा

खतरा (लघुकथा)

उफ्फ आज तो मैं बाल -बाल बचा हूँ। यदि मैं प्लेटफार्म पर न गिरकर सीधा.. पटरियों पर गिर जाता तोआज मेरा पता भी नही पाता।
आजकल इन लोकल ट्रेन्स में इतनी भीड़ रहती है। बस पूछो मत ! मझे तो… आज रह-रहकर यही बात खाए जा ….
रही है क्या होता मालती का मेरे तीन…. मासूम बच्चो को कौन पालता ?? कान पकडता हूँ तौबा करता हूँ।
आइन्दा यह गलती कभी नही दोहराउंगा । हे ईश्वर तेरा लाख-लाख शुक् है तूने मेरी जान बख़्श दी ।
चाहे मुझे घर से एक घंटा पहले ही क्यो न निकलना पड़े परन्तु मैं भागते–२ ट्रेन पकड़ने का प्रयास कदापि नही करुंगा। कोई किसी का नही है भाई ! मेरे गिरने के पश्चात भी लोग मुझे चिकलते हुए अपने गन्तव्य की ओर बढ़े जा रहे थे ।
किसी ने मुझे उठाने का प्रयास तक नही किया। कैसा ज़माना आ गया है। कुछ तो मुझसे टकराकर गिरे और कुछ …..
लड़खड़ाते हुए चल दिए।
किसी को न तो अपनी जान की परवाह है और न किसी अन्य की बस चले जा रहे है भेड़चाल की भांति अब यह आलम है कि:–मैं सभी को यही सलाह देता हूँ कि:—-
समय का पाबन्द है तो एक घण्टा पहले निकल।
ऐसा न हो कि तू देंख न पाए आने वाला कल।

सुधा भारद्वाज
विकासनगर उत्तराखण्ड

Language: Hindi
1 Like · 1 Comment · 418 Views
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