××××××
नगर के प्रतिष्ठित सेठ बाबू अरूण लाल जी दूरस्थ रिश्तेदार के यहां जा रहे थे । यात्रा के दौरान एक शहर में जलपान करने की इच्छा से ड्राइवर से कार रोकने को कहा । ड्राइवर ने कार को सड़क के किनारे खंड़ी कर दी । कार जहाँ खड़ी की गई ,उसके चन्द फासले पर कोई मजहबी मजलिस का आयोजन किया जा रहा था । पुलिसकर्मी अपने ड्यूटी पर मुस्तैद थे ।
अरूण लाल जी जलपान करने रेस्टोरेंट में चले गए । इसी दरम्यान गाय की एक नवजात बछिया कार के नीचे आकर बैठ गयी थी । अरूण लाल जी जलपान करके कार में बैठ गए और ड्राइवर से कार को ले चलने के लिए कहा । ड्राइवर ने कार को ज्योंही आगे बढ़ाने की कोशिश की , कार के नीचे से चिल्लाने की आवाज सुनाई पड़ी । ड्राइवर ने कार को बंद करके नीचे देखा तो बछिया चिल्ला रही थी । तुरंत आसपास के लोगों ने आकर कार को उठाया तो बछिया चिल्लाती हुई भाग गई । दो – एक पुलिसकर्मी भी कार के पास पहुंच गए । कार के नीचे से बछिया को भागते हुए देखा तो वे पुलिसकर्मी रोबदार आवाज में बोले – ” गाड़ी को थाने ले चलिए । ”
अरूण लाल जी ने कहा – ” क्यों ले चलूँ ?”
सिपाही ने कहा – ” बछिया को कार के नीचे दबाकर कहते हो क्यों ले चलूँ ?”
अरूण लाल जी ने कहा – ” लेकिन बछिया को कुछ हुआ तो नही ,वह तो भाग गई । ”
सिपाही ने कहा – ” मैं यह सब सुनना नही चाहता । सीधे – सीधे थाने चलो । जो कहना होगा कोतवाल साहब से कहना । ”
बुझे मन से मजबूरी बश अरूण लाल जी को कोतवाली जाना पड़ा । कोतवाल साहब कहीं गश्त पर गये थे । अरूण लाल जी कोतवाली में तैनात अन्य पुलिसकर्मी से मान – मनव्वल करते रहे , कुछ ले – देकर इस मुसीबत से पिंड छुड़ाना चाहते थे । लेकिन वहाँ पर उनकी बात को कोई सुनने को तैयार नही था ।बस एक ही जबाब था – ” कोतवाल साहब को आने दीजिए । ”
एकाएक उन्हें ख्याल आया कि मेरे मित्र कैलाशनाथ की रिश्तेदारी तो यहीं पर है । उन्होंने झट मोबाइल से मित्र के रिश्तेदार सेठ अमर नाथ जी से सम्पर्क साधा और पूरे हालात से अवगत कराया । अमरनाथ जी नगर के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे । वे थोड़ी देर में कोतवाली पहुंच गए । उसी समय कोतवाल साहब भी आ धमके ।
कोतवाल साहब ने सेठ अमर नाथ जी को देखते ही बड़े विनम्र और शालीन भाव में कहा – “अरे ! लाला जी आप ! कैसे आना हुआ ? मेरे लायक जो सेवा हो कहिये । ”
सेठ अमर नाथ जी कुछ कहते , इसके पहले ही सिपाही बोल पड़ा – ” श्रीमान जी ! ये साहब अरूण लाल जी की कार से बछिया दब गई है । बड़े ना – नुकुर के बाद इनको यहां पर लाया हूँ । ”
कोतवाल साहब अरूण लाल जी के प्रति कठोर कदम उठाते , इसके पहले ही अमर नाथ जी बोल पड़े – ” कोतवाल साहब ये मेरे रिश्तेदार के घनिष्ठ मित्र हैं । कार के नीचे बछिया बैठी थी जरूर , लेकिन उसे कुछ हुआ नही है । वह तो तुरंत भाग खड़ी हुई । आपके मातहत बे वजह मामले को तूल देकर तिल का ताड़ बना रहे हैं । ”
कोतवाल साहब ने जब सेठ अमर नाथ जी की बात को सुना तो अपने मातहत सिपाही से बोले – ” क्यों जी ! यह बात सच है ?”
” हाँ हुजूर !बात तो यही है ” सिपाही ने कहा ।
कोतवाल साहब ने सिपाही को फटकार लगाई गई और अमर नाथ जी से क्षमा याचना मांगते हुए अरूण लाल जी को जाने के लिए कह दिया ।
अरूण लाल जी जान बची लाखों पाए ,मन ही मन सोचते तुरंत ड्राइवर से बोले – ” जल्दी कार भगाओ ।,
इथर अरूण लाल जी की कार बड़े स्पीड से शहर को छोड़ रही थी । दूसरी तरफ शहर में उतनी ही स्पीड से ” धार्मिक स्थल पर बछिया दब गई ” का अफवाह फैल रहा था । वातावरण में ” जय श्रीराम ” तथा ” अल्लाह – हो – अकबर ” के नारे गूँजने लगे थे ।