सफाई कामगारों के हक और अधिकारों की दास्तां को बयां करती हुई कविता 'आखिर कब तक'
आखिर कब तक करते रहोगे अमानवीय काम ढोते रहोगे मलमूत्र मरते रहोगे सीवरों में निकालते रहोगे गंदी नालियाँ ढोते रहोगे लाशें आखिर कब तक सहोगे ये जुल्म कब तक रहोगे...
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