ग़ज़ल - ज़िंदगी इक फ़िल्म है -संदीप ठाकुर
ज़िंदगी इक फ़िल्म है मिलना बिछड़ना सीन हैं आँख के आँसू तिरे किरदार की तौहीन हैं एक ही मौसम वही मंज़र खटकने लगता है सच ये है हम आदतन बदलाओ...
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