सुनहरा सफ़र
इत्तेफ़ाक नहीं साज़िश थी हमारी दोस्ती,
शुरू से कैसे शुरूवात करूँ
बीते सुनहरे सालों को चंद शब्दों में
कैसे बयां करूँ?
अब सारी यादें सिर्फ़ दिल में ही बसेंगी
क्योंकि अब वो कक्षा दोबारा नहीं हँसेगी।
इन फरेबियों की दुनिया में
इधर उधर भटकता जा रहा हूँ
मीठी नोक-झोंक जो भुलाकर
नया सफ़र कैसे शुरू करूँ ?
बीते सुनहरे सालों जो चंद शब्दों में
कैसे बयां करूँ ?
वो बेज़ान कमरा भी मुस्कुराता था
जब अपने अस्तित्त्व के कारण को आते देखता था
सीटें ठुमकती थीं, कुर्सियाँ नाचती थीं
अलग-सी चुप्पी जो भी वो कैसे बाँचती थीं
अब जीवन के इस खालीपन को कैसे भरूँ ?
बीते सुनहरे सालों को चंद शब्दों में
कैसे बयां करूँ ?
बीते हुए दौर की अब यादें ही बाकी हैं
वो हँसी खुलकर हँसने के लिये बेचैन है
बूढ़ा हो चला है वो कमरा राह देखते-देखते,
ये अंतिम बार निहारना है
बस यही उम्मीद बाकी है ।
चाहत बस इतनी-सी है कि
सपनों के नहीं यादों के साथ मरूँ,
बीते सुनहरे सालों को चंद शब्दों में
कैसे बयां करूँ ?
— अनुज