sp112 पत्थर जैसे कई/ अपने अहम की
sp112 पत्थर जैसे कई/ अपने अहम की
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पत्थर जैसे कई नगीने देखे हैं
भंवर साथ में लिए सफीने देखे हैं
मोबाइल का युग भी अजब तमाशा है
बने Facebook फ्रेंड कमीने देखे हैं
इनसे कैसे निपटा जाए बतलाओ
कुछ नुस्खे तो आप सभी ने देखें है
,
युग बीता पल भर में जब वैराग हुआ
पल पल बने पहाड़ महीने देखे हैं
बदल रही हर दिन परिभाषा अपनों की
टूटे सब सुधियों के जीने देखे है
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अपने अहम की बीन बजाने पे तुला है
हर आदमी अधिकार जताने पे तुला है
,
काबू नहीं कर पा रहा अपने दिमाग पर
औरों को सही राह बताने पे तुला है
,
शिवि की शरण में आया है वह बाज देखिये
जो खुद ही कबूतर को बचाने पे तुला है
,
आक्रांत क्लांत विश्व है उन्माद से जिसके
मजहब मेरा महान दिखाने पे तुला है
,
अंदाज़ हमको अपना बदलना नहीं कभी
आ जाये वह जो सामने आने पर तुला है
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डॉक्टर इंजीनियर
मनोज श्रीवास्तव
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