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20 Nov 2024 · 1 min read

sp61 जीव हर संसार में

sp61 जीव हर संसार में
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जीव हर संसार में है नियति के हाथों छोटा या बड़ा खिलौना
खेलता है मानव शरीर से जिसकी देह की मणि आत्मा है

प्राण छूटे जब भी उसके तय वह माटी में मिलेगी या जलेगी
योनि फिर से उसको मिलेगी या मिलेगा उसको फिर परमात्मा है

कर्म पर निर्भर कहानी जानता है सिर्फ ज्ञानी उसके लिए दुनिया है फानी और जीवन की नदी यह बह रही और सतत बहती रहेगी

हम सभी ऐसे पथिक हैं नहीं पता गंतव्य भी हमको जो भी हमको चला रहा है उसका नहीं पता मंतव्य भी हमको

चलेंगे कब तक रुकेंगे कैसे बहेंगे किस धारा में आगे नहीं है नौका पतवार भी नहीं लेकिन हम सब नहीं अभागे

राह दिखाता वह हम सबको खुद बन जाता है ध्रुव तारा हम भी कुछ अच्छा कर पाए रहता बस यही संकल्प हमारा
@
डॉक्टर इंजीनियर
मनोज श्रीवास्तवsp11

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