sp101 कभी-कभी तो
sp101 कभी-कभी तो
*******************
कभी-कभी तो खुद की परछाई से हो जाता है भ्रम
जब-जब जागृत हो जाता है मन के अंदर छुपा अहम
मैं ही सर्वश्रेष्ठ दुनिया में पोर पोर में ज्ञान भरा
लेकिन कड़वा सच है प्यारे अंतस में अज्ञान भरा
सच जब भी दर्पण दिखलाता हो जाती हैं आंखें नम
कभी-कभी तो खुद की परछाई से हो जाता है भ्रम
सच लिखती बेबाक कलम यह हो प्यादा या कोई वजीर
अगर दान देना पड़ जाए कह देते हैं हुए फकीर
ना कुछ पाना ना कुछ खोना फिर होगा काहे का गम
कभी-कभी तो खुद की परछाई से हो जाता है भ्रम
समय पर मिलना और बिछड़ना नियति ने पहले लिखा हुआ
डाली जाने कब टूटेगी है श्री फल भी पका हुआ
पल-पल बदल रहा है खेला नहीं बदलता काल नियम
कभी-कभी तो खुद की परछाई से हो जाता है भ्रम
@
डॉक्टर इंजीनियर
मनोज श्रीवास्तव
sp 101