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11 Nov 2024 · 1 min read

sp, 136 मैं माइक का लाल

sp136 मैं माइक का लाल
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मैं माइक का लाल मुखर हूं सच कहने से न कोई डर है
पैसे देकर टिकट बुक करें ऐसा हम में नहीं हुनर है

दुनिया में बाजार लगा है साहित्यिक व्यापार हो रहा
हम मां सरस्वती के बेटे ओज का स्वर अपना भी प्रखर है
@

नया दौर आया कविता का कैसे-कैसे क्या-क्या बदला
मापदंड हर चीज का पैसा यही चलन है इस दुनिया का

पहले होते थे कवि सम्मेलन अच्छे लोग बुलाए जाते
गीत गजल हो हास्य व्यंग हो मंच की गरिमा वही बढ़ाते

अब तो बदल गया है खेला खूब चल रहा लेना-देना
मैं बोलूंगा तुमको दिनकर तुम दुष्यंत मुझे कह देना

नया दौर आया है जब से कविता तो व्यापार हो गई
हाय हाय और बहुत खूब से एक नया व्यापार हो गई

आयोजक को पैसा देते है मुझको भी कविता पढ़वा दो
दूंगा तुमको बड़ा लिफाफा मुझको मुख्य अतिथि बनवा दो

शहर के सारे अखबारों में नाम तुम्हारा छपवा दूंगा
मैंने पढ़ा था सबसे अच्छा उसकी हैडलाइन लगवा दो

कई किताबें मेरी छपी हैं लेकिन बिकती कहीं नहीं है
मुंह मांगा मैं दूंगा कमीशन बस स्कूलों में लगवा दो

छपता नहीं हूं अखबारों में रचनाएं वापस आ जाती
मानूंगा उपकार तुम्हारा मुझे छद्मश्री ही दिलवा दो

गीत गजल और व्यंग विद्या में मेरा कोई नहीं सानी है
अपने कवि सम्मेलन में प्यारे मुझसे संचालन करवा दो
@
डॉक्टर इंजीनियर
मनोज श्रीवास्तवsp136

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