Naresh Pal Tag: कविता 28 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid Naresh Pal 10 Feb 2018 · 1 min read वो बीते हुए पल वो बीते हुए पल हमें अब् याद आते हैं गाँव के। वो बचपन के दिन हमें याद आते हैं गाँव के।। आँगन में नीव का पेड़ था एक बड़ा हड़ा... Hindi · कविता 3 1 467 Share Naresh Pal 10 Feb 2018 · 1 min read तपा रहे हो तपा रहे हो इसे जानते हैं कि अटूट होता है। दिखा रहे हो इसे मग़र पानी में बुझने के बाद ही मजबूत होता है।। किन्तु अब छुपा के रख लो... Hindi · कविता 2 1 495 Share Naresh Pal 19 Jan 2018 · 1 min read *इंद्रधनुष के समय * मन प्रफुल्लित हो छोटी बूंदें, बैठीं -आकर -इंद्रधनुष -पर । तन बेध रहीं रवि की किरणें बन प्रत्यंचा के प्रखर शर ।। कुछ लटकी भटकी बूंदें भी लसे -सतरंगी -श्रंगार-... Hindi · कविता 491 Share Naresh Pal 18 Jan 2018 · 1 min read *बदला बदला * बदला बदला सा दिखता है मौसम आजकल। हुआ उतारू धोखा देना ,मौसम---- आजकल। बरसाती मांसों के बादल ,हुए ----ठंड से पीले । लगे वरसने ताराओं के, सपने ---होकर-- गीले ।... Hindi · कविता 257 Share Naresh Pal 18 Jan 2018 · 1 min read *फिर भी है समझाना * माना तू ग्यानी है मानव ,फिर भी है समझाना । अभी चेत जा समय शेष है ,फिर होगा पछतांना। बच कर कहाँ जाएगा प्यारे, मौत डाल गयी डेरा । उठ... Hindi · कविता 391 Share Naresh Pal 17 Jan 2018 · 1 min read *नेक है जो आज भी * नेक है जो आज भी, वो ख़ाक छानता है । तरेरता है आँख जो , वो पाग छानता है ।। हैं सत्यता की रेखियां , विसवास कीजिये वे ना जाने... Hindi · कविता 540 Share Naresh Pal 4 Jan 2018 · 1 min read *उड़ना संभल संभल के* उड़ना संभल संभल के पंछी,उड़ना संभल संभल के। अपलक दृष्टि डाल दूर तक,तव कदम उठाना तल के।। जाना है जिस ओर दिशा में ,तुम उस पर दृष्टि डालो । कच्चा... Hindi · कविता 559 Share Naresh Pal 4 Jan 2018 · 1 min read *काम पर जाए * वेचारा रोज वह, मेहनत के काम पर जाए । मस्त होके करता है शाम तक,मन लगाये।। डाँटता है वो भरी दुपहरी में,आके बीच में वजन थोड़ा उठाता है ,तुझे शरम... Hindi · कविता 252 Share Naresh Pal 4 Jan 2018 · 1 min read *शान्ति मिलती रहे* जहां भी हो वो आत्मा,वस शान्ति मिलती रहे। जन्नत में उनकी हमेशा,वो कान्ति खिलती रहे।। मैं अकिंचन हूँ ,खुश रहें वो अपनी ठौर पे वहां खबर मेरी भी उन्हें ये,... Hindi · कविता 613 Share Naresh Pal 4 Jan 2018 · 1 min read *मछलने लगे* वो तोड़ने को चाँद हैं,हंसके मन्छलने लगे । जब से दादी की गोद में हैं, सम्भलने लगे ।। हौशला देखके मासूम का आँखें हंसती हैं दूध के दांत भी अब्... Hindi · कविता 295 Share Naresh Pal 4 Jan 2018 · 1 min read *हाथ से निकल जाएगा* ये बक़्त है , फिर हाथ से निकल जाएगा । पता नहीं ये चाँद फिर, कहाँ ढल जाएगा।। ले लो ना उजाला अभी तुम , इसी हाल में पता नहीं... Hindi · कविता 733 Share Naresh Pal 4 Jan 2018 · 1 min read *अंधता कब दूर होगी* चाहता हूँ मैं पूंछना ,यह अंधता कब दूर होगी। छलती रही इस तरह तो,कब यह मजबूर होगी।। थमा गया कौन उनको, भेद क्यों खुलता नहीं है शाप किस दोष का... Hindi · कविता 1 255 Share Naresh Pal 3 Jan 2018 · 1 min read * समय * दौड़ रहा है पकड़ो इसको,कदापि व्यर्थ मत जाने दो। खाली मस्तक के मंदिर में,एक नई किरण तो आने दो।। जीवन में कब हो जाए उजाला, भला पता रहता किसको ।... Hindi · कविता 1 391 Share Naresh Pal 1 Jan 2018 · 1 min read *थकना बलवान होकर* थकना ? बलवान होकर ,मुख से ना उबारिये । खोल द्वार बन्धनों के, ये निज जीवन संवारिये । एड़ियों में शक्ति जब तक बढ़ते चलो दर सीढियां अर्जन ना होगा... Hindi · कविता 424 Share Naresh Pal 31 Dec 2017 · 1 min read *यहीं रह गई * आये अंत में मिले धूल में,पर यह धरती यहीं रह गई। कुछ दिन का आनन्द प्यारे ,बनी इमारत यहीं रह गई।। बांटने को उत्सुक धरती का आँचल तने खड़े हो... Hindi · कविता 1 214 Share Naresh Pal 31 Dec 2017 · 1 min read *नब वर्ष तेरा अभिनमदन* आये हो नव वर्ष ख़ुशी हो ,करूँ मैं तेरा अभिनंदन। खड़ा हुआ हूँ लिए द्वार पे ,सजा थाल रोली चन्दन।। सम्मुख आओ बढ़कर थोड़ा माथे तिलक लगाऊं । नतमस्तक हो... Hindi · कविता 1 483 Share Naresh Pal 31 Dec 2017 · 2 min read *मैंने न कवि बनना चाहा है ।* मैंने ना कवि बनना चाहा है । मैंने ना रवि बनना चाहता है।। मैंने तो वस सिते हुए उन अपने मग में बुदबुद जैसे श्वांसों के तारों में अबतक उपहासों... Hindi · कविता 462 Share Naresh Pal 30 Dec 2017 · 1 min read *यह क्या है* यह क्या है ? क्या हो रहा है ? जवाव दो । लूले लँगड़े इतिहास को और अध्याय जोड़ रहा है। सीधी साधी आत्माओं को फिर गर्त में मोड़ रहा... Hindi · कविता 480 Share Naresh Pal 29 Dec 2017 · 1 min read *साहसी विहग* विहग वन में जलता रहा, विद्वेष के अंगार पर । पर पथ निज उन्नत किया ,श्रमभेरी का श्रंगार कर।। विहान वेला के आगमन पर,त्यागता था नित नीड अपना। पता न... Hindi · कविता 450 Share Naresh Pal 29 Dec 2017 · 1 min read *चेतन जाग्रत सा सोया था* चेतन जाग्रत सा सोया था । कुछ खोया था ,फिर रोया था।। तन चिन्ह सिहरकर लोचन उतरे। अमल धवल से निर्मल सुथरे ।। वही जाने पहचाने चेहरे। लगा रहे मस्तक... Hindi · कविता 223 Share Naresh Pal 29 Dec 2017 · 1 min read *उद्वेलित दिखता प्रतिशोध* उद्वेलित दिखता ,प्रतिशोध । मैं, तुम, वह, दुर्नीति घमंड । होते निर्मित नित सांचे प्रचंड। लोग अलग हैं जिनके बल पर नहीं चाहता कोई रहना गल कर। निकल नयन दिखलाते... Hindi · कविता 314 Share Naresh Pal 29 Dec 2017 · 1 min read *धार चलते चलते * बनके धार धार पर,यों बहती जा रही । है ना कहीं मकान मेरा कहती जा रही।१। पीती आई आज लों, हर घाट का पानी जानो सच बात है , अजीबो... Hindi · कविता 355 Share Naresh Pal 29 Dec 2017 · 1 min read *वेशक होगी हानि * वेशक होगी हानि,दोशती सर्पों से कर लोगे । पटल पे आकर पड़ जाओगे ,वस रोओगे।। ऊँगली के स्पर्श मात्र से, वह तो उन्नत माथ करेगा। अपना उल्लू सीधा करके तुम... Hindi · कविता 267 Share Naresh Pal 28 Dec 2017 · 1 min read 05-है यह उपवन सूना सूना । है यह उपवन सुना सुना,जा खिल बिहंसकर रे सुमन। देखूं हरियाली को चहुंदिश ,फिर भी नहीं लगता है मन। तरुवर की पांतों पर पाती,हरस सरस् कर झूम रही है ।... Hindi · कविता 375 Share Naresh Pal 28 Dec 2017 · 1 min read 04-दीप तुम्हें । निर्ममता के कुटिल विषाद सह,दीप तुम्हे भेंट ये जीवन। धवल ज्योति कर जलते रहना,है चिराग तुमसे अंत मिलन ।१। मश्त पवन के झोंको से ,होगा तुमसे पल पल पाला। पर... Hindi · कविता 224 Share Naresh Pal 28 Dec 2017 · 1 min read 03-छ्न्द परिंदों के । बैठ पंछियों की पाँति , यह छ्न्द गा रही । आसरे की छाँव से , दुर्गन्ध आ रही ।। घूम आये क्षितिज पार , न मिला कुंद है । नीलमयी... Hindi · कविता 466 Share Naresh Pal 28 Dec 2017 · 1 min read 02- जाग । "सोयेगा कब तक , ओ शेषनाग । बीत गई सदियां ,गुजर गई रातें , सहते पल पल, चोटें अघातें कोई तो मृदु सा छ्न्द सुना देआज ।1। युग विकसित हुई... Hindi · कविता 477 Share Naresh Pal 27 Dec 2017 · 1 min read 01-सौगात है ये जिंदगी । सौगात है ये जिंदगी, उमंग चाहिए । राग- बाग़ -छ्न्द -बन्ध, रंग चाहिए ।। दृष्टि हीन टेक यह पुकार कह रही उल्लासहीन तरंग को है भंग चाहिए।। धरा की प्रति... Hindi · कविता 228 Share