Mukesh Kumar Badgaiyan 4 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid Mukesh Kumar Badgaiyan 9 Nov 2018 · 1 min read माँं:जीवन का पर्याय हे माँ जब तुम्हारे गर्भ में था तब भी स्वर्ग में था जब तुम्हारी गोद में आया संसार स्वर्ग हो गया जीवन दिया माँ तुमने इस जीव को जो भटक... "माँ" - काव्य प्रतियोगिता · कविता 41 162 1k Share Mukesh Kumar Badgaiyan 10 Dec 2017 · 1 min read अमृत की बूंद :मैं रसभरी कविता! मेरा गला घोंटकर गणिका की तरह बाज़ार में बेचने चले हो- - - मैं रस भरी कविता हूँ- - - मुझे तुकबंदी की परिधि में निचोड़कर !नीरस न बनाओ। घनानंद... Hindi · कविता 7 5 746 Share Mukesh Kumar Badgaiyan 7 Dec 2017 · 1 min read संवेदनाएँ सस्ती हो गईं! चौखट पर टिकी आँखें गली से गुजरते डाकिया से लपककर पूछ ही लेतीं थीं! मेरे नाम की चिट्टी तो नहीं आई कहीं से? कड़ी दोपहर में नंगे पैर दौड़कर कुल्फी... Hindi · कविता 7 2 593 Share Mukesh Kumar Badgaiyan 29 Nov 2017 · 1 min read डिजिटल इंडिया का बाबू- - - मुझे हैरानी हुई!और तनिक अफ़सोस भी। जब पोस्ट आॅफिस का तरुण बाबू पाॅलीथीन की गाँठ न खोल पाया जिसमें कुछ चिल्लर रखी थी दो-तीन दफा उसने उठकर सारा आॅफिस छान... Hindi · कविता 7 795 Share