Dr. Ramesh Kumar Nirmesh Language: English 1 post Sort by: Latest Likes Views List Grid Dr. Ramesh Kumar Nirmesh 1 May 2024 · 1 min read मजदूर हूँ साहेब मजदूर हूँ साहेब रोज बिकता हूँ मै सरेआम खुले बाजार में, मै मजदूर हूँ साहेब सोता हूँ खुले आसमान में। कंकड़ों की चादर शिलाओं की बना तकिया, बिस्तर कुछ खास... Poetry Writing Challenge-3 2 77 Share