अमित निश्छल Tag: कविता 11 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid अमित निश्छल 17 Nov 2018 · 1 min read सूर्य षष्ठी सूर्य षष्ठी ✒️ गगन से दूर जातीं हे!, किरण सूरज ज़रा ठहरो गमन करतीं सुनो रुककर, दिवस की हारती पहरों; अकिंचन चाँद तारे हैं, सँवरती शान तुम्हारी अरघ लेकर खड़ीं... Hindi · कविता 2 266 Share अमित निश्छल 14 Nov 2018 · 1 min read नवयुग का आगाज़ नवयुग का आगाज़ ✒️ मंद हुआ वासंती झालर, बंद महक, चिड़िया चहकार; बागीचों में, बागानों में, मूक खड़े पादप फ़नकार। द्रवित नेत्र सुंदर पुष्पों के, नहीं मिले नन्हीं पुचकार; नन्हे... Hindi · कविता 2 1 583 Share अमित निश्छल 12 Nov 2018 · 1 min read चंद प्रीति चंद प्रीति ✒️ इन आँखों में प्रेयसि मुझको, चाँद नज़र क्यूँ आता है? बियाबान तेरी ज़ुल्फ़ों में, रोड़े क्यों अटकाता है? सूर्यमुखी तुझको कहूँगा, चंद्र नाम नहिं लेना है। चंद... Hindi · कविता 331 Share अमित निश्छल 12 Nov 2018 · 1 min read प्रश्नचिह्न प्रश्नचिह्न ✒️ स्वर्णमयी आभा ज्योतित है, राघव के दरबार में और मानवों ने फैलाई, ख़बर, नगर, घर-बार में; रघुनंदन है श्रेष्ठ सभी से मान्य मानकों को बतलाओ सीता, सती अभी... Hindi · कविता 232 Share अमित निश्छल 31 Mar 2018 · 1 min read नाद में मंजीर के बहता रहा ✒️ ऊँघकर, ज्यों बाग में थोड़ा भ्रमर, स्वप्न की रसधार में तिरता रहा; मंजरी की ख़ुश्बुओं में डूबकर, नाद में मंजीर के बहता रहा। फूल को डर था न काँटों... Hindi · कविता 281 Share अमित निश्छल 14 Mar 2018 · 1 min read वसंत का स्वागत बसंती ओढ़कर आया, करो सत्कार तुम रचकर, सजाओ द्वार-चौबारे, पते की बात यह सुनकर; कि लाया सौ टके वाला, मधुप श्रृंगार रस ऐसा, धरा की साँस महके है, मदन की... Hindi · कविता 337 Share अमित निश्छल 6 Mar 2018 · 1 min read मेरे विह्वल परिताप लिये ✒ सतरंगी परिधान लपेटे, वनदेवी तुम बन जाती हो; गिरती बिजली मेरे मन, औ', मंद-मंद तुम मुस्काती हो। मुख प्रसन्न, पर शील झलकता शीतलता, जैसे परिपाटी, विचरण करती हो, देवि... Hindi · कविता 199 Share अमित निश्छल 6 Mar 2018 · 1 min read प्रेयसि पर मर मिट जाना है ✒ मैं नालायक, लोफर भी हूँ तुम देख मुझे मुस्काती हो; पलकों को मीचे, वृहत नैन मुझ पर अपनत्व जनाती हो। जो नैन मिले चुपके से तो कलिका गुलाब हो... Hindi · कविता 221 Share अमित निश्छल 6 Mar 2018 · 3 min read कवि की निद्रा ✒ यों भूलकर एक सृजक, अपने तन को, कुछ नज़्मों को जिंदा किए जा रहा था; भाल पर नवसृजन, दमक थी छपी यूँ, लफ़्ज़ों को परिंदा किए जा रहा था।... Hindi · कविता 457 Share अमित निश्छल 6 Mar 2018 · 1 min read इक दिया जलाने जाना है ✒ जीर्ण हुआ, चाँद अब नभ में, इक दिया जलाने जाना है; सूझ रहा ना रातों में कुछ, जग रौशन करने जाना है। चाँद का, अस्तित्व जिलाने को, बुझती आँखें... Hindi · कविता 236 Share अमित निश्छल 19 Feb 2018 · 1 min read ऊँघता चाँद ऊँघ रहे हो चाँद गगन में, क्या मजबूरी ऐसी? राग अलाप किये बैठे हो, क्या जग है विद्वेषी? इतनी भोली मति है तेरी, उमर रही बचपन की, रात-रातभर जाग रहे... Hindi · कविता 498 Share