Jitendra Dixit 12 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid Jitendra Dixit 15 Jun 2018 · 1 min read राम की शर्तें अपने भक्तों से राम के नाम की फ़ोटो लगा ली सबने, क्योकि फ़ोटो बिना शर्त आयी थी। चलो मानले की भेजने वाले ने इसमें, लगाने की एक शर्त भी लिखबाई थी। शर्त यह... Hindi · कविता 525 Share Jitendra Dixit 2 Jun 2018 · 1 min read शेर को शक्ति दे माँ मिलकर सारे कुत्ते शेर को घेरे नाच रहे है, मिलकर कुत्ते शेर के आंगे भौंक रहे है। देख आज जँगल की पंचायत, मन मैं भय है हम तो अब चौक... Hindi · कविता 1 547 Share Jitendra Dixit 13 May 2018 · 1 min read माँ आज लिखनी थी ऐसी गजल, जो छू जाए सभी का मन। आज लिखनी थी ऐसी कविता, जिसमें समाया हो जीवन दर्शन। आज लिखना था ऐसा कोई गीत, जिसमें खिला हो... Hindi · कविता 1 772 Share Jitendra Dixit 9 May 2018 · 1 min read पिता खुद को सभी से, छुपा के जो रखता है। है नही इतना कठोर, जितना वो दिखता है। चलता है जिंदगीभर, कभी नही जो थकता है। जो पीछे छूट गए तुम... Hindi · कविता 509 Share Jitendra Dixit 22 Mar 2018 · 1 min read भविष्य ना रहेगी रेत,ना ही नदी रहेगी। ना समय रहेगा, ना सदी रहेगी।। प्यास तो होगी पर ना पानी रहेगा। बस पास में तुम्हारें ये नकदी रहेगी। कँहा से लाओगे तुम... Hindi · कविता 555 Share Jitendra Dixit 31 Dec 2017 · 1 min read सिर्फ कैलेंडर बदले ना हम बदले ना तुम बदले, तारीखों के साथ केलेंडर बदले। ना सोच बदली ना बातें बदली, ना बातों के बबंडर बदले। ना जीत बदली ना शिकस्त बदली, ना शिकस्त... Hindi · कविता 411 Share Jitendra Dixit 13 Nov 2017 · 1 min read विद्रोही मन छांव में जब आये पसीना, स्नेह मैं होने लगे घुटन। जब प्रेम गीत कर्कश लगें, बात बात मैं हो अनबन। जब इत्र तुम्हे बदवू लगे, फूलों से छिलने लगे वदन।... Hindi · कविता 631 Share Jitendra Dixit 29 Sep 2017 · 1 min read क्या क्या ढूढ़ता हूँ किताबों को पढ़ना छोड ही दिया है, टीवी के चेनलों मे शुंकु ढूढ़ता हूँ। मैं आदमी नासमझ हूँ जो, फरेबी दुनिया मे यंकी ढूढ़ता हूँ। उम्रभर नजर आसमा पे रखी,... Hindi · कविता 413 Share Jitendra Dixit 10 Sep 2017 · 1 min read अदभुत है बिटिया दिनभर की थकान एक पल मैं हटा देती है, दौड़ कर अपना लॉलीपॉप मुझे चटा देती है। जिंदगी रोज जो मुझे मुश्किलों मैं फसा देती है, उदासी मै भी मेरी... Hindi · कविता 452 Share Jitendra Dixit 25 Aug 2017 · 1 min read छोड़े अंधविश्वास एक न्यायाधीश प्रकरण सुलझा गया, आस्था के सामने विवेक मुरझा गया। दर्जनों लोग मारे गए कितना है नुकसान, ऐंसे लोगों को क्यो मानते हो भगवान। उन्होंने जो किया उसको खुद... Hindi · कविता 467 Share Jitendra Dixit 22 Aug 2017 · 1 min read सामान समझते है उन्हें देख मजबूरी मै मुश्कुरते हैं लोग, वो उसे ही अपना सम्मान समझते हैं। औरों की मजबूरी का उडाते है मजाक, ऊँची बातें करना अपनी शान समझते हैं। इंसानों वाली... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 1 681 Share Jitendra Dixit 21 Aug 2017 · 1 min read बेटों को भी संश्कार देते ना कमा के खाने देते , ना मुशीबतों मैं उधार देतें. दोस्ती ने बचा रखा है अबतक, वरना रिश्तेदार कबका मार देते. मेरा घर छोड़के जाना, तुम्हे गवारा ना था.... Hindi · कविता 685 Share