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ऐ आसमान ....
sushil sarna
मेरा नाम .... (क्षणिका)
sushil sarna
पाते हैं आशीष जो,
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जीवन में आशीष का,
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कठिन काल का काल है,
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दोहा दशम. . . . यथार्थ
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औरत.....
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खुली पलक में झूठ के,
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रंगों को मत दीजिए,
sushil sarna
दृष्टिहीन की दृष्टि में,
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कितनी सारी खुशियाँ हैं
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लघु रचना : दर्द
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छवि हिर्दय में सोई ....
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संकोची हर जीत का,
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दोहा एकादश ... राखी
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कामुक वहशी आजकल,
sushil sarna
कह्र ...
sushil sarna
सम्बन्धों की भीड़ में, अर्थ बना पहचान ।
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ठूँठ ......
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हो जाती है रात
sushil sarna
दोहा पंचक. . . . . विविध
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धड़कन हिन्दुस्तान की.........
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स्वतंत्रता दिवस पर ३ रचनाएं :
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अभिमानी इस जीव की,
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रक्त लिप्त कुर्बानियां,
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इस देश की ख़ातिर मिट जाऊं बस इतनी ..तमन्ना ..है दिल में l
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रंग तिरंगे के सभी , देते हैं आवाज ।
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बुझी नहीं है आज तक, आजादी की आग ।
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स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर कुछ दोहे .....
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दोहा पंचक. . . . . उल्फत
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प्रिय तुझसे मैं प्यार करूँ ...
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क्षणिका :
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उत्तर से बढ़कर नहीं,
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प्रश्न अगर हैं तीक्ष्ण तो ,
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बिन उत्तर हर प्रश्न ज्यों,
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प्रश्नों से मत पूछिए,
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प्रश्नों का प्रासाद है,
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रक़ीबों के शहर में रक़ीब ही मिलते हैं ।
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झुर्री-झुर्री पर लिखा,
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ठहरी - ठहरी जिन्दगी,
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तन्हा चलती जिदंगी,
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चढ़ते सूरज को सभी,
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कुंडलिया
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दोहा त्रयी. . . . .
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बहार...
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अधरों पर विचरित करे,
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बात हमेशा वो करो,
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इच्छाओं की दामिनी,
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सावन की बौछार ने,
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प्यासे मन की कल्पना,
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