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शाम ढली हम घर चले....
suresh sangwan
अंधेरों को हमसफ़र किया जाये
suresh sangwan
अब कोई दिल को भायेगा कहाँ....
suresh sangwan
अपना ही शहर आज मुझे बेगाना क्यूँ लगा
suresh sangwan
ख़ौफ़ अब कोई नहीं जीने का सामां हो गई
suresh sangwan
बुझे हुए हैं दीए तमाम मुनव्वर कर दे..............
suresh sangwan
इक बार मुझे भर के नज़र देख लेने दो....................
suresh sangwan
हंसी ख़ुशी भी वक़्त बिताया जा सकता है ........................
suresh sangwan
ज़माने की हवा हूँ परिंदे उड़ाती फिरती हूँ.......................
suresh sangwan
कुछ आर हुये हैं कुछ पार हुये हैं..........................
suresh sangwan
तू आया है मेरी ज़मीं ओ जहां सारा बनके..................
suresh sangwan
बुझे चराग़ में भी कुछ जला रखा है......................
suresh sangwan
इक ज़रा सी ज़िंदगी में इम्त्तिहां कितने हुये,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
suresh sangwan
इक तेरी दिल को चाह बहुत .................
suresh sangwan
रोज़ नई ख़्वाहिश पे दिल अटका रहता है.................
suresh sangwan
जहाँ में प्यार जो कर जाते हैं...................
suresh sangwan
दिल की दीवार पे कुछ तस्वीरें रहती हैं...................
suresh sangwan
जी रहें हैं तुम बिन इसे सज़ा ही समझो......................
suresh sangwan
देखा है सहरा और-- समंदरों को भी.........................
suresh sangwan
बाख़ूबी खुद को समझाना आता है.................
suresh sangwan
बात- बात पर आँखें न भिगाया करो..................
suresh sangwan
काँटों में उलझा दामन हाथ अज़ाब रखता है...................
suresh sangwan
दुनियां तेरी भीड़ में शामिल मैं भी हूँ...........................
suresh sangwan
मीठी नशीली बातों का काफ़िला भी देखा है.................................
suresh sangwan
क्या हसरत क्या मोहब्बत क्या होती ज़िंदगी सुनिये.................
suresh sangwan
मौसम की बातों पे ना जाया करो..................
suresh sangwan
चाँद सी गुड़िया को मेरी रोशन आसमान मिले..................
suresh sangwan
जब वजह न बची कोई बुलाने की तुम्हें..............
suresh sangwan
यूँ भीख में लेना भी मंज़ूर न था.....
suresh sangwan
जहां में कहां हम ही ऐसे हैं..................
suresh sangwan