Tag: कविता
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आन मिल जाओ सजना
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
मैं औरत मेरा वजूद है कहाँ
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
अभी दो सांस बाकी है
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
भाव दिल में थे न कभी घटे
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
बंद डायरी के पन्ने
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
बाबुल मैं तेरे सिर की पगड़ी
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
बेटी मॉ की है परछाई
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
सुनो सखी एक बात बताऊँ
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
चाँद सितारे झूठे हैं
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
सर्दी की छुट्टियां
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
आओ मिलकर नया साल मनाएं
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
रोशन सारी हवालात हुई
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
धरती पर ही रब हुआ
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
हर प्रीत अवतरन दिवस
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
मिले दो चार यार पुराने
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
उठ जाग मुसाफिर सुबह होने वाली है
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
प्रेम रोग मे हर कोई दिखता बीमार है
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
मधुर मुलाकात
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
तन मन के लोभी
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
सिंदूरी किरदार
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
काली जुल्फ़े समझा जाओ
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
मधुर मिलन प्रेम सौगात
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
परिचित
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
प्रेम रंग
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
सजनी से खुलकर बात हुई
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
बारिश बनकर सावन की
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
दिल झूम उठा
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
समझिए चालीस पार हुए
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
या तेरी मेरी यारी
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
यौवन से भरी कली सजदा सलाम करते हैं
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
परिवार
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
जीवन धारा
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
इश्क
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
भंवरा
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
जिंदगी से सदा लड़ता रहा हूँ
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
दो बोल प्यार के
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
समय सही पुराना है
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
हुई हरकी हिला हूँ ज़ोर से मैं तो
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
जब बेटा तुम कमाओगे
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
रुख्सार से यूँ न खेला करे
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
कुछ लूट जाट है
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
आखिरी मुराद
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
प्रेम रूप साकार
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
आँखों से बरसते मोती
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
तपती रेत सा प्यार
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
अपना अपना नसीब
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खिल कर कली किधर को चली
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
प्रीत पराई होती दुखदाई
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
ये दुनिया बहुत गोल है
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
वासना के भर से प्रेम पात्र खाली है
सुखविंद्र सिंह मनसीरत