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हुस्न के शह्र में आ गए हो मियाँ
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
गया जो देखकर इक बार चारागर, नहीं लौटा
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
एक अदना दिल तो था लेकिन मुझे टूटा लगा
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
मैं ख़ुश्बू हूँ बिखरना चाहता हूँ
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
मुझे क्यूँ तीरगी में रौशनी मालूम होती है
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
तुह्मत तो लाजवाब मिले, होश में हूँ मैं
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
बड़ी मग़रूर किस्मत हो गई है
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
सोचता था लिखूँ तुझको उन्वान कर
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
मुझे ज़िन्दगी का नशा सा हुआ है
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
हुस्न कोई गर न टकराता कभी
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
दरमियाँ अपने ये पर्देदारियाँ
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
मेरा सादा सा दिल है और सादी सी ही फ़ित्रत है
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
क्या आँच दे सकेंगे बुझते हुए शरारे
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
ग़ाफ़िल की सुह्बतों का असर भी तो कम नहीं
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
वो ग़ाफ़िल को ताने सुनाने चले हैं
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
जो अपने थे कभी मुझको तो सारे याद रहते हैं
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
मुहब्बत का मेरे भी वास्ते पैग़ाम आया है
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
मगर जाता है
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
भूल जाओ किसका आना रह गया
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
रात ही जब हुई मुख़्तसर
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’