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हो जाती हैं आप ही ,वहां दवा बेकार
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आंखे सुनने लग गई, लगे देखने कान ।
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ओढ दुशाला श्याम का, मीरा आर्त पुकार
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गई सुराही छूट
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धरा दिवाकर चंद्रमा
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साहित्यिक व्यापार
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औषधि की तालीम
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नही तनिक भी झूठ
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मिले मुफ्त मुस्कान
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समझेंगे झूठा हमें
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खुद को कहें शहीद
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रिश्ता मेरा नींद से, इसीलिए है खास
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कैसे पचती पेट में, मिली मुफ्त की दाल।.
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मर जाओगे आज
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गौरव से खिलवाड़
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आप मुझे महफूज
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वादा करके तोड़ती, सजनी भी हर बार
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मंद बुद्धि इंसान,हमेशा मद में रहते
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दया दुष्ट पर कीजिए
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तात शीश शशि देखकर
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नैन सोम रस ग्लास
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स्वाभिमान सम्मान
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न पणिहारिन नजर आई
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होते हैं हर शख्स के,भीतर रावण राम
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दकियानूसी छोड़ मन,
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नारी की लुटती रहे, क्यूँ कर दिन दिन लाज ?
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कीमत रिश्तों की सही,
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चोखा आप बघार
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तिरस्कार के बीज
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मंदबुद्धि का प्यार भी
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क्रूर घिनौना पाप
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देखो खड़ी ढलान
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अगर सोच मक्कार
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रसगुल्ला गुलकंद
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औरों का अपमान
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दिया जोतने खेत का, टुकड़ा जिन्हें उधार ।
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नाजायज बुनियाद
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बिना खड़क बिन ढाल
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रामचरित मानस रचा
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घर की सब दीवार
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हो जायेंगे शीघ्र ही, पन्ने सभी खराब.
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दुर्जन अपनी नाक
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झूलें नंदकिशोर
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ऊसर धरती में जरा ,उगी हरी क्या घास .
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और करो नादान तुम , कुदरत से खिलवाड़
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जमी हुई है शक्ल पर, जिनके धूल अपार.
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यादें अपनी बेच कर,चला गया फिर वक्त
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जहरीला अहसास
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नैतिकता की हो गई,हदें और भी दूर
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डाकू कपटी चोर ठग,खड़े सभी जब साथ
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