विवेक जोशी ”जोश” 22 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid विवेक जोशी ”जोश” 11 Sep 2021 · 1 min read कुछ एक ज़ख्म गैरों ने दिए,कुछ ज़ख्म अपनों से लिए कुछ एक ज़ख्म गैरों ने दिए,कुछ ज़ख्म अपनों से लिए सजदा है ज़िंदगी तेरा, एक आस लिए एक आस लिए - विवेक जोशी ”जोश” Hindi · शेर 2 4 289 Share विवेक जोशी ”जोश” 31 Aug 2021 · 1 min read विचार : मेरे अंदर का शून्य मुझे मेरे अंदर का शून्य साफ साफ दिखाई देता है जब भी मैं प्रकृति के बीच होता हूं, और शून्य की ताकत से तो दुनिया वाक़िफ़ है। शून्य किसी को... Hindi · लेख 1 2 322 Share विवेक जोशी ”जोश” 20 Aug 2021 · 1 min read " यूँ तो बस एक डोर है राखी " यूँ तो बस एक डोर है राखी धागे के दो छोर है राखी कोई मोती से सजी हुई कोई रेशम से बुनी हुई कोई शंख पुष्प चन्दन चाँदी कोई तितली... Hindi · कविता 5 2 642 Share विवेक जोशी ”जोश” 17 Aug 2021 · 1 min read क्षणिका : हर एक मच्छर बीमारी फैलाए, ये ज़रूरी नहीं !! हर एक मच्छर बीमारी फैलाए ये ज़रूरी नहीं !! मगर हर एक मच्छर खून पियेगा ये लाज़मी है!! आदमी की फितरत भी कुछ ऐसी ही है !! - विवेक जोशी... Hindi · लेख 338 Share विवेक जोशी ”जोश” 4 Aug 2021 · 1 min read प्रश्न खत्म ही नहीं होते!! प्रश्न खत्म ही नहीं होते!! अनगिनत अनवरत विचार मन की धूरी समय की परिधि गणनाएं आंकलन तर्क समझौते प्रश्न खत्म ही नहीं होते!! जो बीत गया सो बीत गया आगे... Hindi · कविता 2 475 Share विवेक जोशी ”जोश” 1 Aug 2021 · 1 min read " मित्रता " : मित्रता क्षणिक आवेश नहीं, जीवन पर्यंत वचन सखा सहचर स्नेही सुहृदय,साथी दोस्त स्वजन मित्रता क्षणिक आवेश नहीं, जीवन पर्यंत वचन मित्र वो ही जो सुख दुख में साथ तुम्हारे रहता प्रेम भाव से आलोकित हो,हो ऐसा कोई... Hindi · कविता 1 4 787 Share विवेक जोशी ”जोश” 25 Jul 2021 · 4 min read ”घर का नाैला ” पहाड़ी इलाकों में रहने वाले लोगों के दुष्कर जीवन से कौन परिचित नहीं। किंतु फिर भी शिवदत्त को अपने पैतृक गांव ”धुनौली” से बहुत लगाव है। शिवदत्त के परिवार में... साहित्यपीडिया कहानी प्रतियोगिता · कहानी 6 4 845 Share विवेक जोशी ”जोश” 20 Jul 2021 · 1 min read अंतहीन सफर चले जाना है अंतहीन सफर पे सभी को स्मृतियां भेंट देकर नियति यही है गर जन्म लिया है सांसे तो ठगिनी हैं अपने मन की करती हैं कर्मों कि छवि... Hindi · लेख 4 4 594 Share विवेक जोशी ”जोश” 20 Jul 2021 · 1 min read एक और सुनहरी शाम !! एक और सुनहरी शाम डूबते सूरज की स्वर्ण किरणों के साथ धीमी हवा के झोकों में डोलते पेड़ पौधे मानो दिन की भर चटक धूप सहकर ताप कम होने पर... Hindi · लेख 3 2 468 Share विवेक जोशी ”जोश” 18 Jul 2021 · 3 min read दधीचि की हड्डियां कृषि और पशुधन के कारण गांव हमेशा से ही समृद्धि का प्रतीक रहे हैं। विकसित और आधुनिक कहे जाने वाले शहरों का भरण पोषण भी गांव पर ही निर्भर है।... साहित्यपीडिया कहानी प्रतियोगिता · कहानी 4 6 748 Share विवेक जोशी ”जोश” 18 Jul 2021 · 1 min read और मैं मौन था... सन्नाटा पसरा था अंधेरा बिखरा था तिलस्म टूटा ना था और मैं मौन था अचानक सुनाई दिए शोर से मन के किसी छोर से मैं परिचित न था और मैं... Hindi · कविता 4 1 666 Share विवेक जोशी ”जोश” 16 Jul 2021 · 2 min read समय चक्र यूं तो समय चक्र अपनी गति से निरंतर चलता रहता है। लेकिन फिर भी हमने कई लोगों को कहते सुना है कि ”अरे समय कब बीत गया पता ही नहीं... साहित्यपीडिया कहानी प्रतियोगिता · कहानी 4 6 980 Share विवेक जोशी ”जोश” 5 Jul 2021 · 1 min read कभी तो होगा नज़रे करम इलाही का कभी तो होगा नज़रे करम इलाही का मैंने तो हर नज़र में ख़ुदा ही देखा है -विवेक जोशी "जोश" Hindi · शेर 2 307 Share विवेक जोशी ”जोश” 3 Jul 2021 · 1 min read गज़ल : चाँद को भी गर आज़माएगी शब चाँद को भी गर आज़माएगी शब नींद हमको भी न आ पायेगी अब सूरज से आँख मिलाकर क्या हाँसिल रौशनी आँखों से लुट जाएगी अब अँधेरे लाख पहरा कर लें... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 325 Share विवेक जोशी ”जोश” 3 Jul 2021 · 1 min read शेर कोई हो ऐसा सुख़न-वर जो मेरा सूरते हाल बयां कर दे मेरी गज़ल भी अधूरी है और मेरे गीत भी अधूरे हैं - विवेक जोशी ”जोश” Hindi · शेर 294 Share विवेक जोशी ”जोश” 3 Jul 2021 · 1 min read प्रश्न खत्म ही नहीं होते!! प्रश्न खत्म ही नहीं होते!! अनगिनत अनवरत विचार मन की धूरी समय की परिधि गणनाएं आंकलन तर्क समझौते प्रश्न खत्म ही नहीं होते!! जो बीत गया सो बीत गया आगे... Hindi · कविता 345 Share विवेक जोशी ”जोश” 3 Jul 2021 · 1 min read ”एकांत” सुनने में जितना उबाऊ लगता है उतना भी बुरा नहीं है एकांत हर एक चीज बहुत साफ नज़र आती है आवाज़ें शोर नहीं लगती सब कुछ चिरपरिचित सा लगता है... Hindi · लेख 267 Share विवेक जोशी ”जोश” 3 Jul 2021 · 1 min read हिंदी से मेरा नाता कुछ कुछ मां जैसा है हिंदी से मेरा नाता कुछ कुछ मां जैसा है जैसे मां उंगली पकड़ पकड़ कर मुझे चलाई थी वैसे ही हिंदी से पहली अभिव्यक्ति आई थी सोचो गर ये सब... Hindi · कविता 1 2 562 Share विवेक जोशी ”जोश” 3 Jul 2021 · 1 min read ”स्मृतियां” देह नाशवान है किन्तु देह को ज़िंदा रखने के लिए हर कोई क्या नहीं करता आत्मा को तो किसी प्रेत की ही संज्ञा दी जाती है ईमान को ज़िंदा रखने... Hindi · लेख 1 4 383 Share विवेक जोशी ”जोश” 3 Jul 2021 · 2 min read ”प्रतिस्पर्धा ” जिस रफ्तार से इंसान ने प्रकृति का ह्रास करना शुरू कर दिया था , प्रकृति को भी अपना परिचय देना आवश्यक लगा और हो गई शुरू प्रतिस्पर्धा। भाई ज़माना ही... Hindi · लेख 1 2 323 Share विवेक जोशी ”जोश” 1 Jul 2021 · 1 min read कोरा भात !! ये बात मैं दिसंबर की एक सर्द सुबह की कर रहा हूं। सड़क की मरम्मत का काम चल रहा है। कुछ लोग आजीविका के लिए सीमेंट का गारा एक जगह... साहित्यपीडिया कहानी प्रतियोगिता · लघु कथा 6 14 704 Share विवेक जोशी ”जोश” 1 Jul 2021 · 1 min read एकाकी मन सुबह से मन बड़ा ही एकाकी महसूस कर रहा था। सोचा कुछ नया किया जाय। कल रात से ही ठंड बहुत थी। सुबह होते होते कोहरे की सफेद घनी चादर... साहित्यपीडिया कहानी प्रतियोगिता · लघु कथा 7 15 678 Share