विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 109 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid Previous Page 2 Next विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 25 Jan 2024 · 1 min read शीतलहर शीतलहर बढ़ने लगी, जीना हुआ दुश्वार। दिनकर भी दिखते नहीं, हुए सभी लाचार। Poetry Writing Challenge-2 · दोहा 268 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 25 Jan 2024 · 1 min read बलबीर तरकश सब खाली हुए, कुंद पड़ी शमशीर। नई चाल चलने लगा, झुका हुआ बलबीर। Poetry Writing Challenge-2 · दोहा 289 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 25 Jan 2024 · 1 min read वार नयनों का धनु साध कर, करते छिप कर वार। बिन बोले ही कर रहे, तीर जिगर के पार। Poetry Writing Challenge-2 · दोहा 319 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 25 Jan 2024 · 1 min read कारोबार उसकी बातों से रहा, बस मुझे सरोकार। मतलब से चलता रहा, उसका कारोबार। Poetry Writing Challenge-2 · दोहा 274 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 25 Jan 2024 · 1 min read इम्तिहान इम्तिहान बहुत हैं जिंदगी में, कदम दर कदम। इम्तिहानों से घबराना कायरता है। जन्म से लेकर, काशीवास तक, इम्तिहानों का दौर चलता है। बचपन से लेकर यौवनावस्था तक विद्यालय का... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 274 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 25 Jan 2024 · 1 min read कुएं का मेंढ़क कुएं का मेंढ़क, कुएं तक ही सीमित रहता है, उसे बाहरी दुनिया से कोई सरोकार नहीं होता है। अपनी इसी सोच के कारण वह कुएं में ही सारा जीवन गुजार... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 319 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 25 Jan 2024 · 1 min read हिम्मत कभी न हारिए सुबह का भूला, दिन में न सही, शाम को भी, घर आ जाए, तो भलमनसाहत है, गुणकथन है। लहरें भी, दूर क्षितिज तक, जाकर, वापस तट तक, लौट आती हैं,... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 299 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 25 Jan 2024 · 1 min read नशा नशा बुरा है, इससे बचना ही श्रेयस्कर है। सब जानते हैं, नशा विनाश लाता है, घर बरबाद करता है। परंतु नशा कुछ कर गुजरने का हो, तो वह नशा, कायापलट... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 321 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 25 Jan 2024 · 1 min read हिंसा हिंसा उद्धवंस की जननी है, प्रलयकारी है। जन हिंसा या युद्ध की विभीषिका रक्त-सरिता बहाती है, बसी-बसाई बस्तियों को मुरदघट्टा बनाती है, खाक-ए-दफन करवाती है। शोणित-होली यातुधान खेलते हैं, इंसान... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 364 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 24 Jan 2024 · 1 min read रणचंडी बन जाओ तुम कूद पड़ो रण में ललना, फिर दानव हुंकारा है। छली गई फिर से वल्लभा, तूने क्यों मौन धारा है। उठा खड़ग, शमशीर थाम, पापी को धूल चटाओ तुम। कृष्ण न... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 410 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 24 Jan 2024 · 1 min read जीवन चक्र पटरी पर दौड़ने वाली लंबी सी रेलगाड़ी, आज माचिस की डिबिया सी सटी पड़ी थी पटरी से परे, तर-पर। कहीं हाथ था, कहीं था पांव, कहीं था धड़ मरहूम पड़ा।... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 405 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 24 Jan 2024 · 1 min read अलमस्त रश्मियां कदंब के किसलय से नीरव-सी झांकती, अभिसारी मंदार की अलमस्त रश्मियां। उसकी कर्णप्रिय पद-मंजीर तृण-तृण में मधुर सरगम छेड़ती हैं। एक अकथ अनुराग की साक्षी बनती हैं। अपने झीने आंचल... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 1 268 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 24 Jan 2024 · 1 min read मुकद्दर मुकद्दर की तरिणी जब दरिया की लहरों से टकरा कर हिचकोले खाते हुए सरिता के तल में समाने लगती है, दिग्भ्रमित, आशंकित। पुरूषार्थ तब मांझी बन कर जल-प्लावित नियति को... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 333 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 24 Jan 2024 · 1 min read आब-ओ-हवा विषाक्त आब-ओ-हवा, जीवन को करती त्रस्त, दिनचर्या होती पस्त। रूग्णता पांव पसारती, कहर बरपाती, बवाल मचाती। दमघोंटू फ़िज़ा, रोगियों की तादाद बढ़ाती, मौत का फरमान ले आती। मानव जनित कृत्य... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 339 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 24 Jan 2024 · 1 min read उदर क्षुधा अलस्सुबह उठते ही शुरू हो जाती है, जद्दोजहद, जिंदगी के हर मध्यस्थ से, रणभूमि के रणबांकुरे-सी। उदर क्षुधा उकसाती है, बेबस बनाती है, पिंजरे के दाड़िमप्रिय-सी। निराश्रय मनुज मड़ई से... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 362 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 24 Jan 2024 · 1 min read नारी अंशुमाली की प्रदीप्त रश्मि-सी, तुषार की धवल टोप-सी, सुधांशु की सौम्य कौमुदी-सी, सरिता की विशद तरंगिणी-सी, प्रदीप की सुजागर दीपशिखा-सी भोर की सुरभित मारुत-सी, नारी। गृहस्थ, खेतिहर, कामकाजी, उद्यमी, संयमी,... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 294 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 24 Jan 2024 · 1 min read उछाह उछाह सफलता के नए सोपान गढता है, शिराओं में तप्त रक्त का उफान भरता है। माउंटेन मैन दशरथ मांझी, जंगल का विश्वकोश तुलसी गौड़ा, सीड मदर राहीबाई सोमा पोपेरे, अक्षर... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 290 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 24 Jan 2024 · 1 min read उपहास उपहास करना नितांत सहज है, किसी की भावनाओं को आहत करने और मानसी आघात के लिए। कटाक्ष, क्षणिक तुष्टि का द्योतक है, पर लक्षित के लिए काल बाण-सा। कदापि जाने-अनजाने... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 1 329 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 24 Jan 2024 · 1 min read पीर स्व की पीर अकुलाती है, शीराज़ा जगाती है, गाहे-बगाहे, काशीवास का आकूत करवाती है, शर-शय्या निश्चेष्ट भीष्म सी। पर पीर गाफ़िल बनाती है, स्वकीय से परे ले जाती है, चढ़ाती... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 328 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 24 Jan 2024 · 1 min read स्मृतियाँ स्मृतियाँ अतीत का चलचित्र बन मानसपट पर उभरती हैं, कौंधती हैं दामिनी सी। कभी सुभग, कभी मर्मघाती, तानाबाना बुनता है उथला सिंधु सा अनुस्मरण। मनुज प्लवक बन जलचर-सा परिपल्व करता... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 263 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 24 Jan 2024 · 1 min read अश्रु अश्रु ढ़रक आते हैं अनायास ही नेत्रों से अंजन को क्षालन के लिए या उर के कुंज में छिपी दारूण वेदना को मुख़्तसर करने के लिए। विनोद की अतिशयता भी... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 296 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 24 Jan 2024 · 1 min read सर्दी क्षितिज के छोर से रजत चुनर ओढ़ नव वधु-सी आहिस्ते-आहिस्ते पग बढ़ाती आ ही गई सर्दी। शीत-बयार शस्त्र लिए, सप्त अश्वों पर आरूढ होकर, वीरांगना-सी समर भूमि में कूद पड़ी... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 213 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 24 Jan 2024 · 1 min read इंद्रधनुष सात रंग का हार सजा कर नभ के वक्ष पर मुदित भाव से उदित होता इंद्रधनुष। सुख-शांति, वैभव, उमंग, उत्साह विश्वास, शौर्य और जागरूकता का संदेश देता इंद्रधनुष। गिरगिट की... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 404 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 24 Jan 2024 · 1 min read जीवन का सार गृहस्थी का दायित्व, कब अवसान देता है, गाड़ी-सा जीवन जिम्मेदारियों की सड़क पर, सरपट दौड़ता है, अहर्निश अविराम। स्व मनोरथ श्रम-भट्ठी में झोंकता है, स्वजनों के काम्यदान के लिए। तब... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 263 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 24 Jan 2024 · 1 min read गुनगुनी धूप छितराई शबनम छिपा लेती है, दिवाकर मरीचि, और महरूम रखती है गुनगुनी धूप से हर जन को। कंपकंपाती काया, शिथिल अंबक एकटक निहारते हैं खुले द्यौ को आशान्वित होकर। यकीनन... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 257 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 24 Jan 2024 · 1 min read खुशी मुट्ठी भर खु़शी उधार देकर देखिए, असीम सुकून मिलेगा। पल-पल विषण्णता समुपस्थित है। ऊहापोह सनी आबोहवा, कब, किसे, रास आती है, घुटन और सिहरन बढ़ाती है। आनंद के चंद पल,... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 370 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 24 Jan 2024 · 1 min read विश्वास नभ में उन्मुक्त, उड़ता पंछी, अपने परों के बूते, मीलों का सफर, तय करता है, अनवरत आगे बढ़ता है। कमरख, तप्त लोहे पर, वार पर वार, करता है, अंततः अपने... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 237 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 24 Jan 2024 · 1 min read हरि द्वार अस्सी बरस की बुधिया, चारपाई पर रजाई से झांकती, रह-रह कर खांसती, आज जमकर पाला पड़ा है, जाड़ा मुंह बाए खड़ा है। सफेद हो गई खड़ी कोंपलें टपक रहे खगों... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 275 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 24 Jan 2024 · 1 min read मेरे हिस्से की धूप सर्द-सर्द रातें हुई, सर्द-सर्द हुए दिन। मिहिका भरमा रही, अब तो हर एक छिन। दिनकर भी ओझल हुए, दिखते अपराह्न बाद। शीत पवन करती फिरे, सबसे वाद-प्रतिवाद। शीतलता कंपा रही,... Poetry Writing Challenge-2 · कविता 301 Share विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’ 30 Oct 2023 · 1 min read अंतर्द्वंद्व जीवन की अकांक्षाएं, आसमान में उड़ते पतंग-सी, डोर रहित, खींच ले जाती हैं, उस अनंत अनहद की ओर, जहां से लौट पाना, दुस्साध्य-सा लगता है। कंटीली डगर, लहुलुहान करने को... Hindi 1 275 Share Previous Page 2 Next