रौशन जसवाल विक्षिप्त Tag: कविता 2 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid रौशन जसवाल विक्षिप्त 8 Feb 2017 · 1 min read आदमी आदमी को ही लूटता है आदमी आदमी को ही लूटता है अपना पराया सभी को लूटता है क्या खोया क्या पाया सोचता है दुख भीतर ही तो कचोटता है जीवन में खो जाते है जो... Hindi · कविता 474 Share रौशन जसवाल विक्षिप्त 1 Feb 2017 · 1 min read माँ... ऊन और सिलाइयों के बीच अंगुलियां बुन डालती थी जुराबें सर्दियों के लिए, टीवी पर निरतन्तर देखते धारावाहिक के बीच ही देख लेती भी जुराबों और पाँव का नाप, नई... Hindi · कविता 1 623 Share