Ran Bahadur Singh Chauhan Language: Hindi 15 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid Ran Bahadur Singh Chauhan 2 Nov 2021 · 2 min read संसारिक और मौलिक जीवन की विधिताः आम सामाजिक जीवन चलाकर, संसारिक मौलिक व्रत्ति में रहते। ऊच-नींच भाव समझ नहीं पाते, कारण औचित्य बिन कार्य रहे करते। एक तरह के रंग रुप दिखाकर, स्वाभाविक कृति आम जैसी... Hindi · कविता 424 Share Ran Bahadur Singh Chauhan 20 Oct 2021 · 2 min read ग्रामीण जीवन की सामान्य विधिता प्रतिभा प्रतिष्ठा यदि मन में होती, सच डर भय शर्म से कह नहीं पाते। विधा कहानी रोचक ढंग बनाकर, उक्त जगह रह अपनी विधा सुनाते। मात-पिता होते बच्चों के प्रेरक,... Hindi · गीत 423 Share Ran Bahadur Singh Chauhan 20 Oct 2021 · 1 min read वाणी और द्रश्य से जीवन का संचालनः--- वाणी अदा में रही कितनी नजाकत, स्वर अपनी नजरों में ब्यभिचार दिखाते। द्रष्टि में कितना रहा आत्मिक आकर्षण, स्वर की आव्रति गुलजार खुद बनाती रही। तन के आवर्धन में कितना... Hindi · कविता 221 Share Ran Bahadur Singh Chauhan 15 Oct 2021 · 2 min read "प्रकृति में मानव जीवन की समदर्शिता" कैसा जीवन है संसारिक मानव का, वह भटककर ताजमहल बन रहता। कारण औचित्य जिसको कुछ जानता नहीं भीड़ में चलकर जीवन चलाता रहता। जिस रचनाकार ने ऐसी विभा बनायी है,... Hindi · कविता 237 Share Ran Bahadur Singh Chauhan 12 Oct 2021 · 2 min read जीवन में वैचारिक सोंच की द्रष्टताः सोंच समझ के आधार पर हम किसी से अच्छा बुरा बर्ताव करते। बाद सोंचते कि हमें यह आवश्यक है कि नकारात्मक भाव को सकारात्मक विधा में कह कर नकारात्मक भाव... Hindi · लेख 1 213 Share Ran Bahadur Singh Chauhan 12 Oct 2021 · 2 min read "मानव के जन्म तथा समाप्त तक जीवन व्रत्ति" जैसी विधा में हम पैदा हुए हैं, जीवन संस्कृति विधा नहीं मालुम। घर परिवार समाज सभी आये होंगे, कारण औचित्य जो उनको भी मालुम नहीं। अपना सहायक सहारा मान लेते,... Hindi · गीत 1 214 Share Ran Bahadur Singh Chauhan 11 Oct 2021 · 1 min read शारीरिक विधा में मन की स्थितः विधा होती क्रियान्वयन समय में, तब कैसे होती मन की विधिता। कुछ समय के लिए रुक जाओ, शरीर दिमाग की उर्जा चार्ज हो जायेगी। कार्य स्थिति यदि अब्यवस्थित विधा में,... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 1 321 Share Ran Bahadur Singh Chauhan 9 Oct 2021 · 1 min read "अनावश्यक चाह का नशा" नशा को लेकर स्यमं खुद पैदा हुए, इच्छा अपेक्षाएं विकार नशे बाद चटनी। नशे के बाद विकार जैसी चाट लेकर, एच्छिक त्रप्ति हेतु नशा विकार विधा आयी। ज्ञान विवेक बिन... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 238 Share Ran Bahadur Singh Chauhan 8 Oct 2021 · 1 min read "आम भारतीय जीवन संस्कृति" जीवन की अकेली ताकत है मन, जो इच्छाओं का परम पिता रहता। संसारिक,अंतर्विधा,ब्रह्मभाव,रहते, इच्छा की विधा हेतु उक्त में अपनाते " आंतरिक विकार भावजबमानव में आते उक्त विधाएं अपनी संस्कृति... Hindi · कविता 382 Share Ran Bahadur Singh Chauhan 5 Oct 2021 · 2 min read ब्यापक मौलिक सोंचों में असीमताः ब्यापक मौलिक सोंचों में असीमताः ------------------------------------------ जीवन की सत्यता अमोघ अस्त्र शस्त्र है, रखती खुद है विचारों में द्रष्टता गहराई। असीम ताकत भरी होती है सत्यता में, स्वर्ग को पृथ्वी-स्वर्ग... Hindi · कविता 205 Share Ran Bahadur Singh Chauhan 2 Oct 2021 · 2 min read "जीवन संचालन की विधिता" जीवन संचालन की विधिता ----------------------------------- जिस परिवेश में जो रहा दिखता, भाव संस्कृति उसकी उसमें दिखती। भाव विचारों की मौलिक संस्कृति, ज्ञान विधा से कुछ समझ नहीं आता। अच्छीे और... Hindi · कविता 1 427 Share Ran Bahadur Singh Chauhan 1 Oct 2021 · 2 min read "आम जीवन की स्वाभाविक संस्कृति" संसारिक विधा में जो होता लाभ हानि, आम जीवन संस्करण में चलता रहता। जीवन के दुख-सुख भावों में आकर, धन-दौलत नारी भोग विधि समा जाता। अब तक जितना जीवन चला... Hindi · कविता 356 Share Ran Bahadur Singh Chauhan 1 Oct 2021 · 1 min read "जीवन की विधिता" परम आत्मा भीषण प्रकाश शक्ति हैं, संसारिक जीवों का वही आत्मधाता है। ईश भगवान जैसे धर्मों के परम मानते, ज्ञान कल्पना करती संस्कृति महान। आम जीवन के हम एक प्राणी,... Hindi · ग़ज़ल/गीतिका 330 Share Ran Bahadur Singh Chauhan 30 Sep 2021 · 1 min read "आम जीवन की संचालित क्रति" मौलिक संसारिक की अल्पज्ञता, कोई चमत्कार-द्रढ़ पौराणिक करता है। सोंच की लाभ-हानि जिसकी जैसै होती, कारण औचित्य बिन वैसे जीवन रहता है। टूटे फाटे घर परिवार मिट्टी जंगल जैसे, उनकी... Hindi · कविता 1 1 465 Share Ran Bahadur Singh Chauhan 25 Jul 2021 · 29 min read प्रेरणा ( कविताएँ 1 से 25 ) 1-मौलिक धरा पर-प्रकृति, जल,वायु,सूर्य,मिट्टि का ------------------------------------------ इस संसार की मौलिक धरा पर, सूरज,जल,वायु,मिट्टी,सौर्यका। प्रकृति हो जाती मौलिक विधा में, नदी-पर्वत बनते आवर्तिक झल्लिका। जब भी कल्पना सजीवित होती, द्रश्य उतार-चढ़ाव... Hindi · कविता 564 Share