Sardanand Rajli 4 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid Sardanand Rajli 3 Jul 2019 · 1 min read दोगला समाज दोगला समाज औरत केवल औरत ही तो नहीं, जन-जननी है,इंसान भी है। व्यवस्थावादी रुढ़ समाज ने, आखिर क्या दिया मुझे, चुटकी भर सिंदूर,बिंदी,झुमका-कंगना,लिपस्टिक,करीम, नहीं दिया कभी मुझे इंसान होने का... Hindi · कविता 1 445 Share Sardanand Rajli 3 Jul 2019 · 1 min read दोगला समाज दोगला समाज औरत केवल औरत ही तो नहीं, जन-जननी है,इंसान भी है। व्यवस्थावादी रुढ़ समाज ने, आखिर क्या दिया मुझे, चुटकी भर सिंदूर,बिंदी,झुमका-कंगना,लिपस्टिक,करीम, नहीं दिया कभी मुझे इंसान होने का... Hindi · कविता 1 457 Share Sardanand Rajli 13 Feb 2019 · 1 min read डर में डर में जब हम अपने, लक्ष्य से, भटक जाते हैं। हमारी जिंदगी, बारूद के ढे़र की तरह, हो जाती है। हर पल डर में ही, बीतने लगती है जिंदगी। न... Hindi · कविता 1 1 237 Share Sardanand Rajli 13 Feb 2019 · 1 min read कविता- जमीं के चांद -सरदानन्द राजली ? *ज़मीं के चांद*? ------------------------------ ऐ-चांद आज खुद पर गुरूर मत करना। आज गली-गली नहीं, घर-घर चांद निकलने वाले हैं। जो पीटते हैं,पत्नियों को, शराबी भी हैं। बहुतों ने कर... Hindi · कविता 1 405 Share