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कागज पे हालाते-दिल लिखते हुये इक दिन मौत आ जानी है
Purav Goyal
ख़ुदकुशी करने के मैं रोज बहाने ढूँढने लगा हूँ
Purav Goyal
आँखों में अब आंसू छिपाना कितना मुश्किल है
Purav Goyal
आँखों की दीवारों में नमी अब बैठने लगी
Purav Goyal
आँखों में दर्द की मौजे अब मचलने लगी
Purav Goyal
पानी आँखों में ठहरा दिखाई देता है
Purav Goyal
खाकी - खद्दर पहने हुये , इंसान बिकने लगे
Purav Goyal
चेहरे की उदासी को , धोने नहीं दिया इक ग़ज़ल ने
Purav Goyal
सम्भाल के मुझे , किताब में कौन रखेगा
Purav Goyal