पंकज परिंदा Tag: कविता 13 posts Sort by: Latest Likes Views List Grid पंकज परिंदा 6 Nov 2024 · 1 min read देश की अखण्डता देश की अखण्डता को, चाहिए सशक्त रक्त, देह में "भगत" जैसी जान होनी चाहिए...!! हिंदी हिन्दू हिंद और एक राष्ट्रगान अब देश की ही चारों ओर शान होनी चाहिए...!! प्रेम... Hindi · कविता 17 Share पंकज परिंदा 26 Sep 2024 · 1 min read प्रिये..!! जीवनरूपी जटिल वृत्त का, तुम अविचल सा केंद्र प्रिये...! सुख दुःख के कोणों की ज्ञाता, तुम हो मेरी चन्द्र प्रिये...! जीवा रूपी हर संकट को, काटा त्रिज्या बन तुमने...! प्रेम... Hindi · कविता 47 Share पंकज परिंदा 26 Sep 2024 · 1 min read जोर लगा के हइसा..! सुन बाप बडौ ना भइसा। अब सबसे ऊपर पइसा। है जाके मन में जइसा, तो वाकौ होगौ तइसा। ओ री भौजिन.! हाँ लल्लू, जरा हाल बताओ कइसा। गर जीवन हो... Hindi · कविता 29 Share पंकज परिंदा 25 Sep 2024 · 1 min read श्रृगार छंद - मात्रिक श्रृगार छंद - मात्रिक दया ही ईश्वर का आधार, करो सब पापों का प्रतिकार। बैर सब जाओ मित्रो भूल, उड़ा दो प्रेम रतन की धूल। करो मत मानवता को खण्ड,... Hindi · कविता 22 Share पंकज परिंदा 25 Sep 2024 · 1 min read "माँ" सम्पूर्ण विज्ञान परमाणु है पदार्थ की मूलभूत इकाई मगर उसके होने का श्रेय जाता है तीन मौलिक कणों इलेक्ट्राॅन प्रोटाॅन और न्यूट्रोन को सुना है इलेक्ट्राॅन चलायमान है नाभिक के चारों ओर... Hindi · कविता 19 Share पंकज परिंदा 25 Sep 2024 · 1 min read "वक़्त की मार" मैं मिलकर आया हूँ उन हुक़्मरानों से जो वक़्त को तरज़ीह नहीं देते वे कहा करते थे अक्सर कि वक़्त खूँटी से बँधी जाग़ीर है उनकी मग़र आज वो कर... Hindi · कविता 28 Share पंकज परिंदा 25 Sep 2024 · 1 min read शून्य सा अवशेष मैं....! इन शून्य विहीन आँखों से जब निहारता में शून्य को, तो शून्य सा अवशेष मैं भटक रहा हूँ शून्य में, इंसान भी निज स्वार्थ में हो गया अब शून्य है,... Hindi · कविता 27 Share पंकज परिंदा 25 Sep 2024 · 1 min read भगवन तेरे भारत में ये, कैसी विपदा आई है....! "ताटंक छंद" हैं आतंकी कीड़े देखो, रोज रात को निकल रहे, टुकड़े टुकड़े कर के देखो, कैसे सबको निगल रहे, दहशतगर्दी फैल रही है, भारत माँ के सीने पर, खुलेआम... Hindi · कविता 19 Share पंकज परिंदा 23 Sep 2024 · 1 min read वंदना दुर्मिल सवैया करता नित वंदन शारद का, पद पंकज रोज पखार रहा। न गुमान रहे अभिमान रहे, धन दौलत आज निसार रहा। यह जीवन सार बने बगिया, उर को दिन... Hindi · कविता 56 Share पंकज परिंदा 23 Sep 2024 · 1 min read आदमी ** प्रमाणिका छंद ** अभी अभी पता चला कि आदमी बड़ी बला। न तौलता जुबां कभी न सोचता भला कभी। कि नीचता दिखा रहा कि द्वेष गीत गा रहा। बड़ी... Hindi · कविता 55 Share पंकज परिंदा 23 Sep 2024 · 1 min read पोषण दर्द का फुटपाथ पर बैठे मैले कुचैले कपड़ों में कुछ एक परिवार आँखें शून्य सी स्वप्न विहीन दुनिया की रंगीनी को छोड़ वे सभी कर रहे थे पोषण...! भर कर आलिंगन में... Hindi · कविता 45 Share पंकज परिंदा 23 Sep 2024 · 1 min read आँखें कुछ ख़फ़ा सी हो गयी हैं,,,! आज रात हुआ यूँ कि, मैं कर रहा था कोशिश नाक़ाम सी, सोने की...! बाईं करवट से कुछ घुटनों को मोड़कर, आद़तन इन आखों को बंद कर, मग़र पता नहीं... Hindi · कविता 61 Share पंकज परिंदा 1 Sep 2024 · 1 min read ----- स्वप्न सलौने ----- दोहा -- छुपे मार्तण्ड जब क्षितिज, तम फैले चहुँ ओर। स्वप्न लोक में पहुँच कर, मनवा होत विभोर।। चौपाई -- नींद चैन की मैं सोया था स्वप्न सुरा में मैं... Hindi · कविता 62 Share